बंद पड़ी रामसेतु परियोजना को षुरू करने का तमिलनाडू विधानसभा में प्रस्ताव पारित
रामसेतु पर वामपंथ की छाया
प्रमोद भार्गव
भारत और श्रीलंका तक फैली सेतुसमुद्रम जलमार्ग परियोजना को लेकर तमिलनाडू में सत्तारूढ़ द्रमुक और भाजपा में ठन गई है। दरअसल तमिलनाडू के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 12 जनवरी को इस परियोजना पर विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर दावा किया है कि इस परियोजना से 50 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। इसलिए इसे षुरू किया जाना चाहिए। स्टानिन ने कहा कि यह परियोजना तमिलनाडू के पूर्व मुख्यमंत्री कलाईनार (करुणानिधि) का भी स्वप्न रहा है। इसलिए इसे षुरू कर रोजगार के रास्ते खोले जाने चाहिए। याद रहे स्टालिन और उनके पिता करुणानिधि घोर वामपंथी रहे हैं। इसलिए वे रामायण और महाभारत से जुड़ी उस प्रत्येक संरचना को काल्पनिक या मिथक मानते हैं, जो भारतीय सनातन संस्कृति की प्राचीनता सिद्ध करने वाली हैं। ये लोग राम मंदिर के निर्माण के भी विरोधी रहे हैं। अतएव इस प्रस्ताव के पारित होते ही भाजपा और कुछ साधु संत द्रमुक सरकार के विरोध में आ खड़े हुए है। भाजपा की तमिलनाडू ईकाई के प्रमुख अन्नामलाई ने कहा कि द्रमुक के नेताओं के स्वामित्व वाली कुछ षिपिंग कंपनियां हैं, जिन्हें इस परियोजना से सीधे लाभ होगा। इधर हिंदू संतों ने दावा किया है कि यह परियोजना सनातन हिंदू धर्म के खिलाफ है। संत दिवाकर आचार्य ने चुनौती दी है कि अगर सरकार प्राचीन रामसेतु को नुकसान पहुंचाने की कोषिष करेगी तो हम विरोध करेंगे और सीने में गोलियां खाने को तैयार रहेंगे। अयोध्या के संत महंत चंद्रभूशण ने कहा कि यह सरकार देष के कुछ लोगों को खुष करने के लिए वोट बैंक की राजनीति कर रही है। बहरहाल इस प्रस्ताव को सांप्रदायिक धु्रवीकरण की षुरूआत माना जा रहा है।
दरअसल समुद्र में जहाजों की आवाजाही के लिए रास्ता बनाया जाना प्रस्तावित है। यह रास्ता नौवहन मार्ग (नाॅटिकल मील) 30 मीटर चैड़ा, 12 मीटर गहरा और 167 किमी लंबा होगा। यह परियोजना यदि पूर्ण रूप में आकार लेती तो पौराणिक काल में अस्तित्व में आए रामसेतु का टूटना तय है। साथ ही करोड़ों मछुआरों की आजिविका प्रभावित होगी और बड़े पैमाने पर समूद्री क्षेत्र का पर्यावरण नश्ट हो जाएगा। बावजूद पूर्व संप्रग सरकार ने सेतु-समुद्रम परियोजना के सिलसिले में उच्चतम न्यायालय में षपथपत्र देकर दलील दी थी कि एडम् ब्रिज अर्थात् रामसेतु हिंदू धर्म का आवष्यक हिस्सा नही है, इसलिए इसे तोड़कर बनाए जाने में हिंदू धर्मांवलंबियों की आस्था आहत नही होगी। यह षपथपत्र हिंदुओं की ही नहीं, भारत की सांस्कृतिक विरासत के साथ खिलवाड़ था। भगवान राम हिंदुओं के ही नहीं भारत की पहचान हैं। गौरतलब है कि राम और कृश्ण भारतीय संदर्भ में दो ऐसे महामानव हैं, जिनकी लीलाओं से ही भारतीय संस्कृति न केवल फली-फूली है, बल्कि इसके संस्कार और रीति-रिवाज भी इन्हीं की उत्सवधर्मिता से विकसित हुए हैं।
तमिलनाडू की मन्नार खाड़ी से पाक जलडमरूमध्य के बीच 5 जिलों में 138 गांव, कस्बे व नगर ऐसे हैं जिनकी बहुसंख्यक आबादी समुद्री जल-जीव व अन्य प्राकृतिक संपदा पर आश्रित है। भारतीय समुद्र की तटवर्ती पट्टी 5 हजार 660 किमी लंबी है। गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडू, पश्चिम-बंगाल, गोवा राज्यों और केंद्र शासित राज्य पांडिचेरी, लक्षद्वीप तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के तहत विशाल तटवर्ती क्षेत्र फैले हैं। रामसेतु की विवादित धरोहर रामेश्वरम् को श्रीलंका के जाफना द्वीप से जोड़ती है। यह मन्नार की खाड़ी में स्थित है। यहीं जो रेत, पत्थर और चूने की दीवार सी 48 किमी लंबी पारनुमा संरचना है, उसे ही रामसेतु का अवशेष माना जाता है। अमेरिका की विज्ञान संस्था नासा ने इस पुल के 2007 में उपग्रह से चित्र लेकर अध्ययन करने के बाद दावा किया था कि मानव निर्मित यह पुल दुनिया की सबसे पुरानी सेतु संरचना है। इस नाते राम की इस धरोहर को सुरक्षित रखने की जरूरत हैं।
बाल्मीकि रामायण, स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, रामकियेन और रामचरित मानस में इस सेतु के निर्माण और इसके ऊपर से लंका जाने के विवरण हैं। इन ग्रंथों के अनुसार राम और उनके खोजी दल ने रामेश्वरम् से मन्नार तक जाने के लिए वह मार्ग खोजा जो अपेक्षाकृत सुगम होने के साथ रामेश्वरम् के निकट था। जहां से राम व उनकी वानर सेना ने उपलब्ध सभी प्रमुख 65 रामायणों के अनुसार लंका के लिए कूच किया था। माना जाता है कि 500 साल पहले तक यहां पानी इतना कम था कि मन्नार और रामेश्वरम् के बीच लोग सेतुनुमा टापूओं से होते हुए पैदल ही आया-जाया करते थे। वैसे इस क्षेत्र में ऐसे छिद्रयुक्त कम दबाव व भार वाले पत्थर भी पाए जाते हैं, जो पानी में नहीं डूबते। दरअसल ज्वालामुखी फूटने के समय ऐसे पत्थर प्राकृतिक रूप से निर्मित हो जाते हैं, जिनके भीतर हवा भरी रहती है। नल और नील ने जिन पत्थरों का उपयोग सेतु निर्माण में किया था, शायद ये उन्हीं पत्थरों के अवशेष हों, जो आज भी धार्मिक स्थलों पर देखने को मिल जाते हैं। साथ ही, नल-नील के नेतृत्व में वानरों ने पेड़ों के तनों और बांसों को खोंखले करके उनके दोनों सिरों को सीलबंद कर दिया। इस कारण ये तने पानी में डूबे नहीं। इन वायु भरे तनों को ताड़वृक्ष के पत्तों एवं छाल की बनी डोरियों, रस्सियों और कसनों से बांधकर इस पुल को मजबूत आधार दिया गया। देष की कई नदियों पर इसी तकनीक से टंकियों व नावों पर बने पुल देखे जा सकते हैं। इस तरह पांच दिन में यह पुल तैयार हुआ। इस पुल को पार कर राम सेना श्रीलंका में सुबेल पर्वत पर पहुंची और सैन्य षिविरों की स्थापना की।
तमिलनाडू की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता ने भी इस परियोजना को रोकने का प्रस्ताव लाकर सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग सप्रंग सरकार से की थी। रामसेतु प्राचीन स्थापत्य कला का अनूठा नमूना है, इस दृश्टि से भी इसका सरंक्षण जरूरी है। साथ ही, जैव संसाधनों की दृष्टि से विश्व बाजार में इस क्षेत्र को सबसे ज्यादा समृद्ध क्षेत्र माना जाता है। इसकी जैविक और पारिस्थिकी विलक्षणता के चलते ही इसे ‘जैव मण्डल आरक्षित क्षेत्र’ संयुक्त राश्ट ने घोषित किया हुआ है। रामसेतु के बहाने पुरातत्वीय दृष्टि से ही नहीं, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व भी इस क्षेत्र का है। मोती के लिए प्रसिद्ध रहा यह क्षेत्र शंख के उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। दरअसल मन्नार की खाड़ी राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय महत्व की एक जीवित प्रयोगशाला है। यहां लगभग 3700 प्रकार के जीव व वनस्पतियों की जीवंत हलचल है। जिसमें कछुओं की 17 प्रजातियां हैं। मूंगे की 117 किस्में हैं। यहां पाए जाने वाले दुर्लभ मैंग्रोव वृक्ष कार्बन डाइ आॅक्साइड का शोषण कर बढ़ते तापमान को कम करते हैं। यह वृक्ष समुद्री तूफान की तीव्रता को भी रोकता है। यहां बड़ी मात्रा में प्रबाल (शैवाल) भित्ति भी हैं। इसी विविधता के कारण भारत को जैविक दृष्टि से दुनिया में संपन्नतम समुद्री क्षेत्र माना जाता है।
समुद्र में उपलब्ध शैवाल (काई) भी एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है। शैवाल में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। लेकिन इसे खाने लायक बनाए जाने की तकनीकों का विकास हम ठीक ढंग से अब तक नहीं कर पाए हैं। लिहाजा इसे खाद्य के रूप में परिवर्तित कर दिया जाए तो परंपरागत शाकाहारी लोग भी इसे आसानी से खाने लगेंगे। शैवाल में अच्छे किस्म की चाॅकलेट से कहीं ज्यादा ऊर्जा होती है। आयुर्वेद औषधियों तथा आयोडीन जैसे महत्वपूण तत्व भी इसमें होते हैं। ये शैवाल भित्तियां उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में न केवल खाद्य संसाधनों, बल्कि जैव रासायनिक प्रक्रियाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हंै। तटीय क्षेत्रों मे ंये लहरों का अवरोध बनकर, कटाव को बाधित करती हैं। 750 प्रकार की मछलियों के आहार व प्रजनन का भी यही काई प्रमुख साधन है। यहां थोरियम के बड़े भण्डार हैं। विश्व का 30 प्रतिशत थोरियम भारत में ही मिलता है। जो यूरेनियम बनाने के काम आता है। सुनामी कहर के विश्व प्रसिद्ध विशेषज्ञ डाॅ. मूर्ति के अनुसार 26 दिसंबर 2004 को आए सुनामी तूफान के दौरान रामसेतु देश के दक्षिण हिस्से के लिए सुरक्षा कवच साबित हुआ था। यानि रामसेतु प्राकृतिक आपदा का भी बड़ा अवरोधक हैं। गोया, इस पुरातात्विक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व की अद्वितीय विरासत का आयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर की तरह सरंक्षण करना जरूरी है।
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रामसेतु पर चल रहे वैज्ञानिक अनुसंधान
रामेष्वरम् से लेकर श्रीलंका के बीच रामसेतु के चित्र आने के बाद से विष्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक संस्था नासा सहित अनेक संस्थानों ने रामसेतु की संचना पर षोध किए हैं। इनके निश्कर्श से तय हुआ है कि उथले समुद्र में दिखाई देने वाली 48 किलोमीटर लंबी सेतु सरंचना रामायणकालीन रामसेतु ही है। पुरातत्वीय अनुसंधानों ने भी इसे भारत की ही नहीं दुनिया की करीब सात हजार साल पुरानी सबसे प्राचीन मानव निर्मित धरोहरों में से एक माना है। सेतु समुद्रम परियोजना ने भी इसकी पौराणिक मान्यता स्वीकारी है। बावजूद इसके अनेक रहस्य समुद्र के गर्भ में छिपे हैं। इन्हीं रहस्यों की परतें खंगालने के लिए वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिशद् (सीएसआईआर) की राश्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा इसकी विज्ञान-सम्मत पड़तान करेगी। इसके तहत यह जानकारी जुटाई जाएगी कि रामसेतु की अधोसरंचना कैसी है ? भूगर्भीय हलचल का इस पर कितना अरस पड़ा है। देष के इतिहास में पहली बार होगा कि किसी धार्मिक मान्यता वाले स्थल का वैज्ञानिक आधर तलाषने के लिए वैज्ञानिक अभियान चलाएंगे। कार्बन डेटिंग तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाएगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इसकी प्राचीनता और मानव निर्मित होने के बिंदुओं पर पहले से ही अनुसंधान कर रहा है। अब इन दोनों संस्थानों के निश्कर्श से यह परिणाम निकाला जाएगा कि क्या वाकई रामसेतु रामायणकालीन सरंचना है। हालांकि राम जन्मभूमि की तरह रामसेतु का भी सत्यापन होना तय है। दरअसल सेतु समुद्रम परियोजना के अंतर्गत मनमोहन सिंह सरकार ने इसे तो एक षपथ-पत्र षीर्श न्यायालय में देकर काल्पनिक बताते हुए भगवान राम के अस्तित्व को भी नकार दिया था।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।