कांग्रेस के लिए मुसीबत बनती जा रही बसपा
मुरैना सीट पर 1996 के बाद से कांग्रेस का नहीं खुला खाता
भोपाल। प्रदेश में लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने राहुल गांधी की न्याय यात्रा के साथ ग्वालियर-चंबल अंचल के मुरैना से एक तरह से चुनाव का आगाज किया है। कांग्रेस के लिए यह सीट लंबे समय से बसपा के कारण परेशानी खड़ी कर रही है। पिछले दो लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस यहां पर तीसरे नंबर पर पहुंच गई है।
प्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव में कई स्थानों पर बसपा के प्रत्याशियों ने कांग्रेस के समीकरण बिगाड़े और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला था। विधानसभा के इन परिणामों को देख अब कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव की रणनीति अलग तरीके से तय की है। कांग्रेस ने बसपा के प्रभाव वाली सीटों पर फोकस कर मैदान में उतरने की रणनीति तय की है। इसके चलते लोकसभा चुनाव के पहले राहुल गांधी की न्याय यात्रा के जरिए कांग्रेस अपने कमजोर होते ग्वालियर-चंबल अंचल को मजबूत करने का प्रयास कर रही है। राहुल की यात्रा भी प्रदेश में सबसे पहले मुरैना लोकसभा सीट पर ही पहुंची। इसके पीछे कांग्रेस का तर्क साफ रहा कि मुरैना सीट पर वह इस बार कब्जा करना चाहती है। इस सीट पर कांग्रेस को ज्यादा भरोसा इसलिए भी है कि क्योंकि नगरीय निकाय चुनाव में उसे महापौर और फिर 2023 के विधानसभा चुनाव में मुरैना से कांग्रेस विधायक को जीत हासिल हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ खुद न्याय यात्रा के मुरैना पहुंचने पर इसका उल्लेख कर चुके हैं। हालांकि इस सीट पर कांग्रेस को लंबे समय यानि 1996 से लोकसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं हुई है। 1996 के बाद से भाजपा के खाते में यह सीट जा रही है।
मुरैना सीट पर भाजपा का लगातार बढ़ता प्रभाव कांग्रेस के लिए चिंता का कारण भी बनता जा रहा है। कांग्रेस को यहां पर कमजोर करने में बहुजन समाज पार्टी की मजबूत होती पकड़ रही है। इस सीट पर बसपा के बढ़ते प्रभाव के चलते पिछले दो चुनावों में कांग्रेस तीसरे नंबर पर पहुंच गई है। यही कारण है कि कांग्रेस मुरैना सीट पर जीत की रणनीति के तहत काम कर रही है, लेकिन बसपा का बढ़ता प्रभाव अब भी उसकी चिंता का कारण बना जा रहा है।
बसपा का बढ़ता प्रभाव कांग्रेस की चिंता
मुरैना सीट पर बसपा का खासा प्रभाव रहा है। इस सीट पर बसपा के प्रभाव के चलते 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस तीसरे नंबर पर चली गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी वृंदावन अहिरवार को 2,42, 586 वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे थे। वहीं 2019 में बसपा के करतार सिंह भडाना को 1,29,380 वोट मिले थे। इन दोनों ही चुनाव में कांग्रेस यहां पर तीसरे नंबर पर रही थी। जबकि 2009 के चुनाव में बसपा के बलवीर दंडोतिया 1,42,073 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। इस सीट पर पिछले चुनावों का इतिहास यह बताता है कि यहां पर कांग्रेस को बसपा कमजोर करती रही है।
तीन सीटों पर नहीं है ज्यादा असर
ग्वालियर-चंबल अंचल की मुरैना के अलावा तीन अन्य सीटों भिंड, ग्वालियर और गुना-शिवपुरी में बसपा का उतरना प्रभाव नजर नहीं आता है। साल 2019 के चुनाव में ग्वालियर से बसपा प्रत्याशी को 44,677 वोट मिले थे। जबकि भिंड में 66, 613 वोट हासिल हुए थे। वहीं गुना सीट पर बसपा को 37 हजार 350 वोट मिले थे। इसी तरह साल 2014 के चुनाव में ग्वालियर में बसपा को 68 हजार 196 वोट, भिंड में 33,803 वोट मिले थे और गुना में 27 हजार 412 वोट प्राप्त किए थे।