यूपी: जाट मुस्लिमों के दिलों में दंगे का दर्द, विकास नहीं सुरक्षा की गारंटी चाहिए
पश्चिमी यूपी की सियासत करवट ले रही है. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे और 2014 के लोकसभा चुनावों की बयानबाजी को पीछे छोड़ पुराने सियासी गठजोड़ को दोहराने की कोशिश चल रही है. साधारण और खाप पंचायतों से जुड़े जाट और मुस्लिम जाट पंचायत तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन पंचायतों के सभी छोटे-बड़े ओहदेदार जरूर साथ बैठकर हुक्का गुड़गुड़ा रहे हैं.
बेशक आज भी दंगों के शरणार्थी कैम्प में रह रहे हैं. गांव में घर सूने पड़े हैं. दोनों ही पक्षों के नौजवान कानूनी कार्रवाई के डर से गांव और घर लौटने को तैयार नहीं हैं. बावजूद इसके कुछ लोग ऐसे हैं जो कह रहे हैं कि बस करो…अब बहुत हो गया.
बेशक सुनने में ये एक सामान्य सा जुमला मालूम हो रहा हो, लेकिन इसके सियासी मायने बहुत दूर तक जाते हैं. सिर्फ मुजफ्फरनगर ही नहीं आरक्षण के लिए हरियाणा में जो कुछ भी हुआ उसकी भी एक टीस यहां के लोगों में है. खास बात ये भी है कि हुक्के के आसपास बैठे ओहदेदारों की ये तस्वीर पश्चिमी यूपी के सिर्फ एक जिले की नहीं है. जानकारों की मानें तो यूपी में इन तस्वीरों को जोड़ने का काम कर रहे हैं जाट नेता यशपाल मलिक.
मुजफ्फरनगर के जाट नेता उमेश मलिक का कहना है कि 2013 में जो कुछ भी हुआ अब हम उसकी तह में नहीं जाना चाहते हैं. दोनों लोगों की कोशिशों से हम एक प्लेटफॉर्म पर आ रहे हैं. अब अगर ऐसे चुनावी माहौल में भाजपा नेता संगीत सोम कुछ कहते हैं तो वो जाटों की बात न मानकर उनकी व्यक्तिगत समझी जाए.
जाट आरक्षण संघर्ष समिति और जाट नेता यशपाल मलिक कहते हैं कि हम कई महीने पहले से ही दोनों समुदाय को एक मंच पर लाने का काम कर रहे हैं. इस कोशिश में हम लोग बहुत हद तक सफल भी हो चुके हैं. अब किसी भी हाल में दंगे कराने वाली पार्टी को क्षेत्र में सक्रिय नहीं होने दिया जाएगा. हम किसी पार्टी को नहीं उस उम्मीदवार को वोट करेंगे जो राजनीति के नाम पर दंगा कराने वाली और आरक्षण के मुद्दे पर वादाखिलाफी करने वाली पार्टी को हराएगा. इसके लिए हम लगातार बैठकें और रैली भी कर रहे हैं.
बागपत के मोमिन अली कहते हैं कि हम दंगे में बर्बाद हो गए. बेघर हो गए. ऐसा कोई नहीं था जिसने हम पर सियासत न की हो. किसी ने लड़ाने का काम किया तो किसी ने उस चिंगारी को ठंडी करने के बजाय और हवा देने का. वोट तो हम करेंगे, लेकिन हमारी बस इतनी सी गुजारिश है कि हम हों या फिर कोई और सबसे पहले जानमाल की सुरक्षा की जाए.
बागपत के ही वसीम चौहान कहते हैं कि अब हम सिर्फ पार्टी को ही देखकर वोट नहीं देंगे. पार्टी के साथ उम्मीदवार पर भी खास ध्यान होगा. क्योंकि पहले जो कुछ भी हुआ उसके पीछे विधायकों की भी बहुत बड़ी भूमिका थी. पार्टी का रोल तो बहुत देर से शुरू होता है, उससे पहले तो क्षेत्र में विधायक या सांसद को ही निष्पक्ष होकर काम करना होता है.
बागपत क्षेत्र के रिहान का कहना है कि दंगे कराने वाले विकृत मानसिकता के होते हैं. ऐसे लोगों का कोई धर्म नहीं होता है. दंगा भड़कने के पीछे प्रशासन की लापरवाही भी थी. हमें जाट बिरादरी से कोई शिकायत नहीं है. अगर अच्छा उम्मीदवार हुआ तो हम जाट को भी वोट देंगे. जो बीत गया उसके पीछे दौड़ने से कोई फायदा नहीं है. फिर दंगे न हों इस बारे में हम दोनों को ही मिलकर सोचना होगा.
खेती से जुड़े सलीम राणा बताते हैं कि एक पार्टी ने कुछ गुंडा तत्वों के साथ मिलकर दंगा करवाया था. वरना तो हमें आज भी जाट बिरादरी पर पूरा भरोसा है कि वो ऐसा कर ही नहीं सकते. हमारे यहां जाट उम्मीदवार हैं और हम उसी को वोट देंगे. अब एक बार फिर कुछ लोग वोटों के लिए गलत बयानबाजी कर रहे हैं, लेकिन हम दोनों ने ही ठान लिया है कि ऐसे लोगों की बातों में नहीं आना है.
बागपत छपरौली विधानसभा निवासी रिटायर्ड प्रधानाचार्य रज्जाक चौहान बताते हैं कि इस बार यहां पार्टी से ज्यादा स्थानीय प्रत्याशी महत्वयपूर्ण होगा. दंगे का असर भी देखने को मिल रहा है. दोनों के बीच खाई बना दी गई है. पहले ऐसा नहीं था. एक पार्टी ने सियासत के चलते ये गंदा काम किया है. कोशिश होगी कि खाई बनाने की सियासत ज्यादा दिनों तक न चले.