ढ़ह गया कांग्रेस का इकलौता गढ़ छिंदवाड़ा
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1997 के बाद भाजपा ने की जीत हासिल
भोपाल। प्रदेश में कमलनाथ के गढ़ के रूप में बचे इकलौते छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र में इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सेंधमारी कर कमलनाथ के इस दुर्ग को ढ़हा दिया। कमलनाथ के पुत्र सांसद नकुलनाथ को इस बार करारी हार का सामना करना पड़ा। दोपहर होते-होते रूझान देखते हुए खुद कमलनाथ ने इस सीट पर पुत्र नकुलनाथ की हार को स्वीकार किया।
प्रदेश में कांग्रेस के लिए छिंदवाड़ा, रतलाम-झाबुआ, राजगढ़ और गुना संसदीय क्षेत्र मुफीद माने जाते थे। इनमें छिंदवाड़ा में भाजपा चाहकर भी जीत हासिल नहीं कर पा रही थी। देश के संसदीय इतिहास में देखा जाए तो इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहा है। 1952 में हुए चुनाव के बाद इस सीट पर 1997 तक कांग्रेस का कब्जा रहा। जबकि 1980 के बाद इस सीट को नई पहचान मिली। इस सीट को कमलनाथ का गढ़ माना जाने लगा। भाजपा ने काफी प्रयास किए, मगर 1997 के चुनाव तक वह जीत हासिल नहीं कर पाई। 1997 में इस गढ़ को भाजपा के दिग्गज नेता सुंदरलाल पटवा ने भेदा था। उन्होंने कमलनाथ को इस चुनाव में 37 हजार 680 वोटों से हराकर चुनाव जीता था। हालांकि इस सीट पर फिर कमलनाथ ने 1998 में कब्जा हासिल किया। इसके बाद वे लगातार 2014 तक चुनाव जीतते रहे। 2018 में जब वे मुख्यमंत्री बने तो 2019 में उन्होंने बेटे नकुलनाथ को यहां से चुनाव मैदान में उतारा और जीतवाया भी। मगर इस बार 2024 के चुनाव में वे अपने इस गढ़ को नहीं बचा पाए। इस बार भाजपा के विवेक बंटी साहू ने नकुलनाथ को चुनाव हराकर कमलनाथ के इस गढ़ में जीत हासिल की है।
कुछ इस तरह रहा इतिहास
प्रदेश में हुए 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस ने कब्जा किया था। इस चुनाव में रायचंद भाई पहली बार सांसद बने। इसके बाद 1957 और 1962 में कांग्रेस के भिकुलाल चांडक ने इस सीट पर जीत हासिल की। 1967,1971 और 1977 के चुनाव में कांग्रेस के गार्गीशंकर मिश्रा ने छिंदवाड़ा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। 1980 में कांग्रेस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को नए दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई) के रूप में पहचान मिली। इस दल की ओर से पहली बार कमलनाथ ने 1980 में छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद कमलनाथ पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे लगातार 1984, 1989, 1991 में भी लोकसभा का चुनाव जीते। बाद में 1996 में उनकी पत्नी अल्कानाथ ने यहां से चुनाव जीता, मगर यह सीट कमलनाथ के गढ़ के रूप में अपनी पहचान बना चुकी थी। इस सीट पर लंबे समय की मेहनत के बाद 1997 में भाजपा के सुंदरलाल पटवा ने जीत हासिल की। यह पहला अवसर था जब कांग्रेस के इस गढ़़ में भाजपा ने सेंधमारी कर जीत हासिल की थी। हालांकि बाद में 1998 में हुए चुनाव में फिर कमलनाथ यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और जीत हासिल की। इसके बाद वे 1999, 2004, 2009 और 2014 तक लगातार यहां से सांसद रहे। बाद में 2018 में उन्हें कांग्रेस ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी और विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने जीत हासिल की और सत्ता में वापसी की। कमलनाथ मुख्यमंत्री बने। इसके बाद 2019 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो कमलनाथ ने अपनी सुरक्षित सीट पर नकुलनाथ को मैदान में उतारा और भाजपा के अथक प्रयास के बाद भी कांग्रेस को यहां पर जीत दिलाई। इस चुनाव में कांग्रेस सिर्फ कमलनाथ के इस गढ़ को ही बचा पाई थी। जबकि सभी 28 सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा था। इस बार 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में समीकरण बदले और भाजपा ने इस सीट पर जीत हासिल कर कमलनाथ के इस गढ़ को ध्वस्त कर दिया।
कमलनाथ ने स्वीकार की हार
छिंदवाड़ा में भाजपा के विवेक बंटी साहू की निर्णायक बढ़त के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने छिंदवाड़ा से हार स्वीकार करते हुए कहा कि छिंदवाड़ा की जनता ने जो निर्णय दिया है, उसे स्वीकार करते हैं। देश में जो निर्णय आया है, वह अच्छा परिणाम है। इंडिया गठबंधन को दूसरों के साथ गठबंधन करके सरकार बनाने का प्रयास करना चाहिए। वहीं भाजपा के 400 पार वाले दावे पर तंज कसते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि पहले उनको 230 पार कर लेना चाहिए। गौरतलब है कि कमलनाथ सुबह से प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में थे। दोपहर को जब उनके पुत्र के पक्ष में परिणाम नहीं आए तो वे प्रदेश कांग्रेस कार्यालय से चले गए।
भोपाल। प्रदेश में कमलनाथ के गढ़ के रूप में बचे इकलौते छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र में इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सेंधमारी कर कमलनाथ के इस दुर्ग को ढ़हा दिया। कमलनाथ के पुत्र सांसद नकुलनाथ को इस बार करारी हार का सामना करना पड़ा। दोपहर होते-होते रूझान देखते हुए खुद कमलनाथ ने इस सीट पर पुत्र नकुलनाथ की हार को स्वीकार किया।
प्रदेश में कांग्रेस के लिए छिंदवाड़ा, रतलाम-झाबुआ, राजगढ़ और गुना संसदीय क्षेत्र मुफीद माने जाते थे। इनमें छिंदवाड़ा में भाजपा चाहकर भी जीत हासिल नहीं कर पा रही थी। देश के संसदीय इतिहास में देखा जाए तो इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहा है। 1952 में हुए चुनाव के बाद इस सीट पर 1997 तक कांग्रेस का कब्जा रहा। जबकि 1980 के बाद इस सीट को नई पहचान मिली। इस सीट को कमलनाथ का गढ़ माना जाने लगा। भाजपा ने काफी प्रयास किए, मगर 1997 के चुनाव तक वह जीत हासिल नहीं कर पाई। 1997 में इस गढ़ को भाजपा के दिग्गज नेता सुंदरलाल पटवा ने भेदा था। उन्होंने कमलनाथ को इस चुनाव में 37 हजार 680 वोटों से हराकर चुनाव जीता था। हालांकि इस सीट पर फिर कमलनाथ ने 1998 में कब्जा हासिल किया। इसके बाद वे लगातार 2014 तक चुनाव जीतते रहे। 2018 में जब वे मुख्यमंत्री बने तो 2019 में उन्होंने बेटे नकुलनाथ को यहां से चुनाव मैदान में उतारा और जीतवाया भी। मगर इस बार 2024 के चुनाव में वे अपने इस गढ़ को नहीं बचा पाए। इस बार भाजपा के विवेक बंटी साहू ने नकुलनाथ को चुनाव हराकर कमलनाथ के इस गढ़ में जीत हासिल की है।
कुछ इस तरह रहा इतिहास
प्रदेश में हुए 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस ने कब्जा किया था। इस चुनाव में रायचंद भाई पहली बार सांसद बने। इसके बाद 1957 और 1962 में कांग्रेस के भिकुलाल चांडक ने इस सीट पर जीत हासिल की। 1967,1971 और 1977 के चुनाव में कांग्रेस के गार्गीशंकर मिश्रा ने छिंदवाड़ा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। 1980 में कांग्रेस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को नए दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई) के रूप में पहचान मिली। इस दल की ओर से पहली बार कमलनाथ ने 1980 में छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद कमलनाथ पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे लगातार 1984, 1989, 1991 में भी लोकसभा का चुनाव जीते। बाद में 1996 में उनकी पत्नी अल्कानाथ ने यहां से चुनाव जीता, मगर यह सीट कमलनाथ के गढ़ के रूप में अपनी पहचान बना चुकी थी। इस सीट पर लंबे समय की मेहनत के बाद 1997 में भाजपा के सुंदरलाल पटवा ने जीत हासिल की। यह पहला अवसर था जब कांग्रेस के इस गढ़़ में भाजपा ने सेंधमारी कर जीत हासिल की थी। हालांकि बाद में 1998 में हुए चुनाव में फिर कमलनाथ यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और जीत हासिल की। इसके बाद वे 1999, 2004, 2009 और 2014 तक लगातार यहां से सांसद रहे। बाद में 2018 में उन्हें कांग्रेस ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी और विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने जीत हासिल की और सत्ता में वापसी की। कमलनाथ मुख्यमंत्री बने। इसके बाद 2019 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो कमलनाथ ने अपनी सुरक्षित सीट पर नकुलनाथ को मैदान में उतारा और भाजपा के अथक प्रयास के बाद भी कांग्रेस को यहां पर जीत दिलाई। इस चुनाव में कांग्रेस सिर्फ कमलनाथ के इस गढ़ को ही बचा पाई थी। जबकि सभी 28 सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा था। इस बार 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में समीकरण बदले और भाजपा ने इस सीट पर जीत हासिल कर कमलनाथ के इस गढ़ को ध्वस्त कर दिया।
कमलनाथ ने स्वीकार की हार
छिंदवाड़ा में भाजपा के विवेक बंटी साहू की निर्णायक बढ़त के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने छिंदवाड़ा से हार स्वीकार करते हुए कहा कि छिंदवाड़ा की जनता ने जो निर्णय दिया है, उसे स्वीकार करते हैं। देश में जो निर्णय आया है, वह अच्छा परिणाम है। इंडिया गठबंधन को दूसरों के साथ गठबंधन करके सरकार बनाने का प्रयास करना चाहिए। वहीं भाजपा के 400 पार वाले दावे पर तंज कसते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि पहले उनको 230 पार कर लेना चाहिए। गौरतलब है कि कमलनाथ सुबह से प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में थे। दोपहर को जब उनके पुत्र के पक्ष में परिणाम नहीं आए तो वे प्रदेश कांग्रेस कार्यालय से चले गए।