चुनाव दर चुनाव बढ़ते गए निर्दलीय प्रत्याशी
बिगाड देते हैं भाजपा-कांग्रेस का गणित
भोपाल। प्रदेश के चुनावी इतिहास पर नजर डाले तो जैसे-जैसे साल गुजरते जा रहे हैं, राजनीतिक दलों की संख्यों में तो बढ़ौत्री आई है, मगर निर्दलीय प्रत्याशी भी साल-साल बड़ी संख्या में चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। 1957 में जहां प्रदेश में 317 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में थे, वहीं 2018 में इनकी संख्या तीन गुना बढ़कर 1098 हो गई थी।
मध्यप्रदेश में चुनावी प्रक्रिया ष्शुरू होने के साथ ही चुनाव मैदान में निर्दलीय प्रत्याशियों के मैदान में उतरने का सिलसिला भी जारी रहा। ये निर्दलीय प्रत्याशी दलगत प्रत्याशियों की जीत-हार के समीकरण बिगाड़ते रहे और कुछ सफलता पाकर विधानसभा पहुंचने में भी सफल रहे। किसी एक चुनाव में नहीं, बल्कि हर चुनाव में इन निर्दलियों की संख्या में इजाफा नजर आता रहा। अधिकांश वे दावेदार निर्दलीय रूप में मैदान में नजर आते रहे, जिन्हें अपने दलों से टिकट नहीं मिला। निर्दलियों का मैदान में उतारकर राजनीतिक दलों के समीकरण को बिगाड़ने का यह सिलसिला अब भी जारी है।
मध्यप्रदेश में 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या 469 रही थी। इस चुनाव में 23 उम्मीदवार निर्दलीय रूप से जीतकर सदन पहुंचे थे। इसके बाद 1977 के चुनाव में इनती संख्या चार अंकों यानी हजार के उपर पहुंच गई थी। इस चुनाव में 1288 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे थे। इस चुनाव में पांच निर्दलीय प्रत्याशी ही जीत हासिल कर पाए थे। 1990 में प्रदेश में पहली बार ऐसा हुआ था जब निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या दो हजार के पार हो गई थी। 1990 के विधानसभा चुनाव में 2730 निर्दलीयों ने चुनाव मैदान में ताल ठोकी थी। इनमें से मात्र दस निर्दलीय प्रत्याशियों को जीत हासिल हुई थी। इसके बाद कभी भी इनकी संख्या दो हजार का आंकड़ा पार नहीं कर पाई। 2018 के चुनाव में 1094 थी। इनमें से मात्र चार निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।
कब कितने निर्दलीय उतरे मैदान में
1951 469
1957 317
1962 364
1967 634
1972 641
1977 1288
1980 840
1985 1448
1990 2707
1993 1814
1998 892
2003 879
2008 1398
2013 1090
2018 1094