कहीं सीधा तो कहीं त्रिकोणीय मुकाबला, बागी भी बिगाड़ रहे समीकरण
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सियासी गुणा भाग में उलझी भाजपा-कांग्रेस, बसपा, सपा ने लगाया जोर
भोपाल। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के मतदान के पहले प्रचार के अंतिम चरण में प्रदेश में कई सीटों पर सीधा मुकाबला नजर आ रह है तो कहीं पर त्रिकोणीय मुकाबला होने से भाजपा और कांग्रेस के सियासी समीकरण भी बिगड़ते नजर आ रहे हैं। खासकर बागियों ने दोनों दलों के बीच मुकाबले को कड़े संघर्श में बदलकर रोचक बना दिया है। वहीं बसपा, सपा और अन्य दलों के उम्मीदवार भी इन दलों के लिए कुछ स्थानों पर परेशानी का कारण बन रहे हैं।
प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए 17 नवंबर को मतदान होना है। इसके पहले चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में कई स्थानों पर दिग्गज नेताओं के लिए मुकाबला कड़ा होता नजर आया है। वहीं भाजपा और कांग्रेस के बीच कई स्थानों पर सीधा और कई स्थानों पर त्रिकोणीय मुकाबला भी बन गया है। त्रिकोणीय मुकाबले को बनाने में बसपा और सपा के अलावा निर्दलीय प्रत्याशियों की अह्म भूमिका है। इनमें दोनों ही दलों के बागियों की संख्या ज्यादा है, जो अपने ही पुराने दलों के लिए मुसीबत खड़ी करते नजर आ रहे हैं। ग्वालियर-चंबल अंचल में इसका खासा असर नजर आया है। इस अंचल की 34 सीटों पर आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर बसपा के प्रत्याशियों ने मुकाबले को कड़ा कर दिया है। अंचल में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के अलावा केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिश्ठा दांव पर लगी हुई है। अंचल की करीब दो दर्जन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर नजर आ रही है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के दबदबे वाले महाकौशल में भी इस बार मुकाबला रोचक बना है। इस अंचल में 38 सीटें हैं, 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 24 और भाजपा को 13 स्थानों पर जीत हासिल हुई थी। 1 सीट पर निर्दलीय जीता था। अंचल की अनुसूचित जाति वर्ग की आरक्षित 13 सीटों को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा संघर्श है। पिछले पर कांग्रेस के खाते में 13 में से 11 सीटें गई थी, जबकि 2 सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा था। इस बार भी अंचल में कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। कई सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है।
सत्ता की राह दिखाता है मालवा
सत्ता की राह दिखाने वाले मालवा-निमाड़ अंचल में 66 सीटें है। इन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही चुनाव के पहले से ही अपना प्रभाव बनाने के लिए प्रयासरत रही। पिछले चुनाव यानी 2018 में कांग्रेस को 35 और भाजपा को 28 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। शेष सीटों पर निर्दलीय जीते थे। इस बार भी इस अंचल में बागियों ने भाजपा और कांग्रेस के समीकरण को बिगाड़ दिया है। कई स्थानों पर इनकी उपस्थिति ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। संघ के गढ़ माने जाने वाले इस इलाके में भाजपा की स्थिति कमजोर आंकी गई थी। इसे सुधारने के लिए दिग्गज नेताओं ने रोड ष्शो और सभाएं की साथ ही संघ ने भी सक्रियता दिखाई है। मगर अंचल के मतदाता का मौन अंत तक बरकरार नजर आया है। कई सीटों पर बने कड़े मुकाबले के चलते दोनों ही दलों की परेशानी अंत तक खत्म नहीं हुई है।
सपा-बसपा दिखा रही दम
बुंदेलखंड अंचल की 30 सीटों पर पिछले चुनाव की तरह इस बार भी सपा और बसपा प्रत्याशी अपना दम दिखा रहे हैं। इस अंचल में दलित और ओबीसी मतदाता का खासा प्रभाव नजर आता है। ये मतदाता भाजपा और कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी करता रहा है। अंचल में कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला बना हुआ है। इसी तरह विंध्य अंचल की 26 सीटों में से कई सीटों पर ब्राहम्ण वर्ग का खासा प्रभाव नजर आता है। इस अंचल में भी कई सीटों पर बागियों की बगावत के चलते समीकरण बिगड़े हैं। वहीं सपा, बसपा के अलावा यहां पर कुछ सीटों पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों ने भी भाजपा और कांग्रेस के सामने मुसीबत खड़ी की है। वहीं कुछ सीटों पर निर्दलीय भी संकट खड़ा कर रहे हैं।
भोपाल। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के मतदान के पहले प्रचार के अंतिम चरण में प्रदेश में कई सीटों पर सीधा मुकाबला नजर आ रह है तो कहीं पर त्रिकोणीय मुकाबला होने से भाजपा और कांग्रेस के सियासी समीकरण भी बिगड़ते नजर आ रहे हैं। खासकर बागियों ने दोनों दलों के बीच मुकाबले को कड़े संघर्श में बदलकर रोचक बना दिया है। वहीं बसपा, सपा और अन्य दलों के उम्मीदवार भी इन दलों के लिए कुछ स्थानों पर परेशानी का कारण बन रहे हैं।
प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए 17 नवंबर को मतदान होना है। इसके पहले चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में कई स्थानों पर दिग्गज नेताओं के लिए मुकाबला कड़ा होता नजर आया है। वहीं भाजपा और कांग्रेस के बीच कई स्थानों पर सीधा और कई स्थानों पर त्रिकोणीय मुकाबला भी बन गया है। त्रिकोणीय मुकाबले को बनाने में बसपा और सपा के अलावा निर्दलीय प्रत्याशियों की अह्म भूमिका है। इनमें दोनों ही दलों के बागियों की संख्या ज्यादा है, जो अपने ही पुराने दलों के लिए मुसीबत खड़ी करते नजर आ रहे हैं। ग्वालियर-चंबल अंचल में इसका खासा असर नजर आया है। इस अंचल की 34 सीटों पर आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर बसपा के प्रत्याशियों ने मुकाबले को कड़ा कर दिया है। अंचल में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के अलावा केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिश्ठा दांव पर लगी हुई है। अंचल की करीब दो दर्जन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर नजर आ रही है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के दबदबे वाले महाकौशल में भी इस बार मुकाबला रोचक बना है। इस अंचल में 38 सीटें हैं, 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 24 और भाजपा को 13 स्थानों पर जीत हासिल हुई थी। 1 सीट पर निर्दलीय जीता था। अंचल की अनुसूचित जाति वर्ग की आरक्षित 13 सीटों को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा संघर्श है। पिछले पर कांग्रेस के खाते में 13 में से 11 सीटें गई थी, जबकि 2 सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा था। इस बार भी अंचल में कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। कई सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है।
सत्ता की राह दिखाता है मालवा
सत्ता की राह दिखाने वाले मालवा-निमाड़ अंचल में 66 सीटें है। इन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही चुनाव के पहले से ही अपना प्रभाव बनाने के लिए प्रयासरत रही। पिछले चुनाव यानी 2018 में कांग्रेस को 35 और भाजपा को 28 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। शेष सीटों पर निर्दलीय जीते थे। इस बार भी इस अंचल में बागियों ने भाजपा और कांग्रेस के समीकरण को बिगाड़ दिया है। कई स्थानों पर इनकी उपस्थिति ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। संघ के गढ़ माने जाने वाले इस इलाके में भाजपा की स्थिति कमजोर आंकी गई थी। इसे सुधारने के लिए दिग्गज नेताओं ने रोड ष्शो और सभाएं की साथ ही संघ ने भी सक्रियता दिखाई है। मगर अंचल के मतदाता का मौन अंत तक बरकरार नजर आया है। कई सीटों पर बने कड़े मुकाबले के चलते दोनों ही दलों की परेशानी अंत तक खत्म नहीं हुई है।
सपा-बसपा दिखा रही दम
बुंदेलखंड अंचल की 30 सीटों पर पिछले चुनाव की तरह इस बार भी सपा और बसपा प्रत्याशी अपना दम दिखा रहे हैं। इस अंचल में दलित और ओबीसी मतदाता का खासा प्रभाव नजर आता है। ये मतदाता भाजपा और कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी करता रहा है। अंचल में कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला बना हुआ है। इसी तरह विंध्य अंचल की 26 सीटों में से कई सीटों पर ब्राहम्ण वर्ग का खासा प्रभाव नजर आता है। इस अंचल में भी कई सीटों पर बागियों की बगावत के चलते समीकरण बिगड़े हैं। वहीं सपा, बसपा के अलावा यहां पर कुछ सीटों पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों ने भी भाजपा और कांग्रेस के सामने मुसीबत खड़ी की है। वहीं कुछ सीटों पर निर्दलीय भी संकट खड़ा कर रहे हैं।