अस्तित्व की चिंता, प्रत्याशी उतारने को लेकर ऊहापोह
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छोटे और क्षेत्रीय दलों के नेता नहीं कर पा रहे फैसला
भोपाल। लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी मैदान में उतारने को लेकर राज्य के छोटे और क्षेत्रीय दलों के पदाधिकारी अब तक फैसला नहीं ले पाए हैं। इन दलों को इस बार चुनाव में विधानसभा चुनाव की तरह परिणाम आने की आशंका है, इसके चलते वे चुनाव मैदान में प्रत्याशी उतारे या नहीं, इसका फैसला नहीं कर पा रहे हैं। वहीं दल का राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए बैठकें कर रहें हैं, मगर उन्हें उनके सामने इस बार दावेदारी करने वालों का भी टोटा है।
लोकसभा चुनाव में इस बार बार-बार दल बदलने वाले नेताओं और छोटे एवं क्षेत्रीय दलों के सामने बड़ी चुनौती प्रत्याशियों का टोटा नजर आ रहा है। इन दलों के पास अब तक चुनाव लड़ने के लिए दावेदारी करने वालों की संख्या या तो कम है और कुछ के पास तो अब तक एक भी दावेदार चुनाव लड़ने की इच्छा जताते हुए नहीं पहुंचा है। इसके चलते इन दलों के पदाधिकारियों के सामने चिंता इस बात की खड़ी हो रही है कि दल का राजनीतिक वजूद बचाए रखने के लिए क्या करें? प्रत्याशी मैदान में उतारें या नहीं। हालांकि दलों की बैठकें चल रही है, मगर इन दलों से जुड़े कार्यकर्ता भी अब रूचि नहीं दिखा रहे हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में बसपा, सपा के अलावा जनता दल यू, जनता दल एस, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, सीपीआई, सीपीआई एम सहित अन्य दलों के प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में मैदान में नजर आते रहे हैं। मगर इस बार बसपा के अलावा किसी दल ने अब तक सभी 29 सीटों पर प्रत्याशी मैदान में उतारने की बात नहीं की है। बसपा को भी अब तक सभी सीटों पर प्रत्याशी नहीं मिले हैं। वह भी प्रत्याशी चयन के लिए दावेदारों का इंतजार कर रही है। जबकि समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके केवल एक सीट खजुराहो से प्रत्याशी उतारने का फैसला लिया है।
दल-बदल करने वालों की कम हुई पूछ-परख
बार-बार दल बदलकर चुनाव लड़ने वाले नेताओं की पूछ-परख भी इस बार भाजपा, कांग्रेस के अलावा बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों में नहीं हो रही है। इन दलों ने भी अब तक ऐसे नेताओं से दूरी बना रखी है। इसके चलते चुनाव लड़ने के इच्छुक नेताओं के सामने अपने अस्तित्व को बचाने का संकट खड़ा हो गया है। बड़े दलों ने जब इन नेताओं से किनारा करना ष्शुरू किया तो अब ये क्षेत्रीय दलों की ओर नजरें टिकाएं हुए हैं, मगर क्षेत्रीय दल खुद अब तक फैसला नहीं ले पा रहे हैं कि वे चुनाव मैदान में प्रत्याशी उतारे या नहीं। इसके पीछे इन दलों के पदाधिकारी आर्थिक संकट बता रहे हैं। साथ ही हमेशा की तरह किसी दल का भी सहयोग उन्हें नहीं मिल पा रहा हैं।
भोपाल। लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी मैदान में उतारने को लेकर राज्य के छोटे और क्षेत्रीय दलों के पदाधिकारी अब तक फैसला नहीं ले पाए हैं। इन दलों को इस बार चुनाव में विधानसभा चुनाव की तरह परिणाम आने की आशंका है, इसके चलते वे चुनाव मैदान में प्रत्याशी उतारे या नहीं, इसका फैसला नहीं कर पा रहे हैं। वहीं दल का राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए बैठकें कर रहें हैं, मगर उन्हें उनके सामने इस बार दावेदारी करने वालों का भी टोटा है।
लोकसभा चुनाव में इस बार बार-बार दल बदलने वाले नेताओं और छोटे एवं क्षेत्रीय दलों के सामने बड़ी चुनौती प्रत्याशियों का टोटा नजर आ रहा है। इन दलों के पास अब तक चुनाव लड़ने के लिए दावेदारी करने वालों की संख्या या तो कम है और कुछ के पास तो अब तक एक भी दावेदार चुनाव लड़ने की इच्छा जताते हुए नहीं पहुंचा है। इसके चलते इन दलों के पदाधिकारियों के सामने चिंता इस बात की खड़ी हो रही है कि दल का राजनीतिक वजूद बचाए रखने के लिए क्या करें? प्रत्याशी मैदान में उतारें या नहीं। हालांकि दलों की बैठकें चल रही है, मगर इन दलों से जुड़े कार्यकर्ता भी अब रूचि नहीं दिखा रहे हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में बसपा, सपा के अलावा जनता दल यू, जनता दल एस, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, सीपीआई, सीपीआई एम सहित अन्य दलों के प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में मैदान में नजर आते रहे हैं। मगर इस बार बसपा के अलावा किसी दल ने अब तक सभी 29 सीटों पर प्रत्याशी मैदान में उतारने की बात नहीं की है। बसपा को भी अब तक सभी सीटों पर प्रत्याशी नहीं मिले हैं। वह भी प्रत्याशी चयन के लिए दावेदारों का इंतजार कर रही है। जबकि समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके केवल एक सीट खजुराहो से प्रत्याशी उतारने का फैसला लिया है।
दल-बदल करने वालों की कम हुई पूछ-परख
बार-बार दल बदलकर चुनाव लड़ने वाले नेताओं की पूछ-परख भी इस बार भाजपा, कांग्रेस के अलावा बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों में नहीं हो रही है। इन दलों ने भी अब तक ऐसे नेताओं से दूरी बना रखी है। इसके चलते चुनाव लड़ने के इच्छुक नेताओं के सामने अपने अस्तित्व को बचाने का संकट खड़ा हो गया है। बड़े दलों ने जब इन नेताओं से किनारा करना ष्शुरू किया तो अब ये क्षेत्रीय दलों की ओर नजरें टिकाएं हुए हैं, मगर क्षेत्रीय दल खुद अब तक फैसला नहीं ले पा रहे हैं कि वे चुनाव मैदान में प्रत्याशी उतारे या नहीं। इसके पीछे इन दलों के पदाधिकारी आर्थिक संकट बता रहे हैं। साथ ही हमेशा की तरह किसी दल का भी सहयोग उन्हें नहीं मिल पा रहा हैं।