कांग्रेस की राह में रोड़ा बनती रही बसपा, वजूद भी हुआ खत्म
भोपाल। मध्यप्रदेश के चुनाव परिणामां में साफ नजर आया कि प्रदेश में तीसरी ष्शक्ति के रूप में अपने को बताने वाली बसपा का वजूद अब खत्म होता जा रहा है। विधानसभा के 2023 के चुनाव और वर्तमान लोकसभा चुनाव में जिस तरह से बसपा ने कांग्रेस की जीत की राह में रोड़ा अटकाया उससे उसका अपना वोट बैंक कम होता जा रहा है। बसपा का संगठन मजबूत होने के बजाया अब प्रदेश में खत्म होने की स्थिति में नजर आने लगा है।
प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की स्थिति साल दर साल कमजोर होती जा रही है। बसपा ने प्रदेश में जब से कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए चुनाव मैदान में राजनीतिक दलों में जोड़-तोड़ कर प्रत्याशी मैदान में उतारना ष्शुरू किया उसके कांग्रेस को खासा नुकसान हुआ। पिछले दो विधानसभा चुनाव में बसपा की भूमिका प्रदेश में कांग्रेस प्रत्याशियों को हराने वाली रही। भाजपा को इसका सीधा-सीधा फायदा भी मिला। मगर उसका संगठन लगातार कमजोर होता गया। पार्टी के कैडर वाले नेताओं की उपेक्षा होने से ये मैदान में कम सक्रिय नजर आए। इसका परिणाम यह रहा कि बसपा को विधानसभा 2013 के चुनाव में एक भी सीट प्रदेश में नहीं मिली। जिस बसपा ने लोकसभा में सतना और रीवा संसदीय सीट से अपने कैडर के चार नेताओं को सांसद बनवाया, उस बसपा का हाल प्रदेश में अब यह है कि उसके प्रत्याशी जीतना तो दूर कहीं पर दूसरे नंबर पर भी नजर नहीं आ रहे हैं।
वर्तमान लोकसभा चुनाव में भी बसपा का यही हाल रहा। भिंड में बसपा ने कांग्रेस नेता देवाशीश जरारिया को मैदान में उतारा। जरारिया मात्र डेढ़ लाख वोट पा सके। वहीं मुरैना में रमेश गर्ग को एक लाख वोट मिले। सतना में भाजपा के पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी को मैदान में उतारा, मगर वे भी करीब एक लाख वोट हासिल कर सके। इन तीनों ने कांग्रेस की जीत की राह में एक बार फिर रोड़ा अटकाया। मगर खुद मजबूत नहीं हो सके। तीनों उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे।
गिरता गया मत प्रतिशत
प्रदेश में बसपा का लगातार मत प्रतिशत गिरता जा रहा है। 1996 के लोकसभा चुनाव में बसपा को 8.18 फीसदी वोट मिला था। इसके बाद 1998 में 8.7, 1999 में 5.23,2004 में 4.75, 2009 में 5.85, 2014 में 3.80 और 2019 में 2.38 प्रतिशत वोट हासिल हुआ था। इस चुनाव में बसपा को मात्र 3.11 फीसदी वोट हासिल हुआ है।