लड़ते तो हजारों , दहाई में भी नहीं मिलती जीत
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इस बार भी दो हजार से ज्यादा निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में
भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव में बड़ी संख्या में निर्दलीय मैदान में उतरते हैं, मगर उनकी जीत दहाई के अंक को भी नहीं दू पाती है। 1990 के बाद से अब तक सात विधानसभा के चुनाव में सिर्फ एक बार 1990 में ऐसा हुआ है, जब 10 प्रत्याशी निर्दलीय रूप से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। अधिकांश निर्दलीय अपने जमानत जब्त कराते आए है। फिर में बड़ी संख्या में चुनावी मैदान में इनकी उपस्थिति नजर आती है।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान नामांकन भरके मैदान में उतरकर विधायक बनने का सपना निर्दलीय उम्मीदवार देखते तो हैं, मगर चुनिंदा ही ऐसे होते हैं जो मतदाता की पसंद पर खरे उतरते हैं। साल-दर-साल निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनाव मैदान में बड़ी संख्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, मगर जीत कर विधानसभा पहुंचने वालों में इनकी संख्या दहाई का आंकड़ा नहीं छू पाती है। दहाई का आंकड़ा केवल एक ही बार निर्दलीय प्रत्याशियों ने छुआ था। 1990 के विधानसभा चुनाव में यह जादुई आंकडा सामने आया था, जब दस निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनाव जीता था। इस चुनाव में 2730 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में थे। इसके बाद 1993 में 1814 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे, मगर जीत सिर्फ आठ को मिली थी। इसी तरह 1998 के चुनाव में 892 निर्दलीय प्रत्याशियों में से 9 को जीत हासिल हुई थी। वहीं 2003 में 879 निर्दलीय प्रत्याशियों में से 2, 2008 में 1398 निर्दलीय प्रत्याशियों में से 3, 2013 के चुनाव में 1090 निर्दलीय प्रत्याशियों में से 3 और 2018 के विधानसभा चुनाव में 1094 निर्दलीय प्रत्याशियों में से सिर्फ चार प्रत्याशियों को जीत हासिल हुई थी।
अर्जुन सिंह, बाबूलाल गौर भी निर्दलीय चुनाव जीतकर बने थे विधायक
प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय अर्जुन सिंह भी अपने राजनीतिक जीवन में पहला चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। उन्होंने अपना पहला चुनाव 1957 में मझौली से जीता था। इस चुनाव में वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे। इसके बाद 1960 में वे कांग्रेस में शामिल हुए और 1980 में वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसी तरह स्वर्गीय बाबूलाल गौर ने भी अपना पहला चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीता था। गौर ने 1974 में अपना पहला चुनाव भोपाल के दक्षिण-पश्चिम विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीता था। इसके बाद वे भाजपा में शामिल हुए। हालांकि गौर 1946 से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के स्वयंसेवक रहे। मगर पहला चुनाव वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीते। बाद में भोपाल के गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र से 1980 के बाद लगातार 2013 तक विधायक रहे। गौर 2004 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि उनका कार्यकाल कम समय का रहा।
चारों निर्दलीय को भाजपा-कांग्रेस ने बनाया प्रत्याशी
2018 का निर्दलीय चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने वाले चारों निर्दलीय प्रत्याशियों को इस बार भाजपा और कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया है। इनमें वारासिवनी से प्रदीप जायसवाल गुड्डा को भाजपा ने, सुरेंद्र सिंह शेरा को कांग्रेस ने बुरहानपुर से, केदार डावर को कांग्रेस ने खरगोन जिले की भगवानपुरा सीट से और विक्रम सिंह राणा को सुसनेर विधानसभा सीट से भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया है।
भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव में बड़ी संख्या में निर्दलीय मैदान में उतरते हैं, मगर उनकी जीत दहाई के अंक को भी नहीं दू पाती है। 1990 के बाद से अब तक सात विधानसभा के चुनाव में सिर्फ एक बार 1990 में ऐसा हुआ है, जब 10 प्रत्याशी निर्दलीय रूप से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। अधिकांश निर्दलीय अपने जमानत जब्त कराते आए है। फिर में बड़ी संख्या में चुनावी मैदान में इनकी उपस्थिति नजर आती है।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान नामांकन भरके मैदान में उतरकर विधायक बनने का सपना निर्दलीय उम्मीदवार देखते तो हैं, मगर चुनिंदा ही ऐसे होते हैं जो मतदाता की पसंद पर खरे उतरते हैं। साल-दर-साल निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनाव मैदान में बड़ी संख्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, मगर जीत कर विधानसभा पहुंचने वालों में इनकी संख्या दहाई का आंकड़ा नहीं छू पाती है। दहाई का आंकड़ा केवल एक ही बार निर्दलीय प्रत्याशियों ने छुआ था। 1990 के विधानसभा चुनाव में यह जादुई आंकडा सामने आया था, जब दस निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनाव जीता था। इस चुनाव में 2730 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में थे। इसके बाद 1993 में 1814 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे, मगर जीत सिर्फ आठ को मिली थी। इसी तरह 1998 के चुनाव में 892 निर्दलीय प्रत्याशियों में से 9 को जीत हासिल हुई थी। वहीं 2003 में 879 निर्दलीय प्रत्याशियों में से 2, 2008 में 1398 निर्दलीय प्रत्याशियों में से 3, 2013 के चुनाव में 1090 निर्दलीय प्रत्याशियों में से 3 और 2018 के विधानसभा चुनाव में 1094 निर्दलीय प्रत्याशियों में से सिर्फ चार प्रत्याशियों को जीत हासिल हुई थी।
अर्जुन सिंह, बाबूलाल गौर भी निर्दलीय चुनाव जीतकर बने थे विधायक
प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय अर्जुन सिंह भी अपने राजनीतिक जीवन में पहला चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। उन्होंने अपना पहला चुनाव 1957 में मझौली से जीता था। इस चुनाव में वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे। इसके बाद 1960 में वे कांग्रेस में शामिल हुए और 1980 में वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसी तरह स्वर्गीय बाबूलाल गौर ने भी अपना पहला चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीता था। गौर ने 1974 में अपना पहला चुनाव भोपाल के दक्षिण-पश्चिम विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीता था। इसके बाद वे भाजपा में शामिल हुए। हालांकि गौर 1946 से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के स्वयंसेवक रहे। मगर पहला चुनाव वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीते। बाद में भोपाल के गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र से 1980 के बाद लगातार 2013 तक विधायक रहे। गौर 2004 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि उनका कार्यकाल कम समय का रहा।
चारों निर्दलीय को भाजपा-कांग्रेस ने बनाया प्रत्याशी
2018 का निर्दलीय चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने वाले चारों निर्दलीय प्रत्याशियों को इस बार भाजपा और कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया है। इनमें वारासिवनी से प्रदीप जायसवाल गुड्डा को भाजपा ने, सुरेंद्र सिंह शेरा को कांग्रेस ने बुरहानपुर से, केदार डावर को कांग्रेस ने खरगोन जिले की भगवानपुरा सीट से और विक्रम सिंह राणा को सुसनेर विधानसभा सीट से भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया है।