साल-दर-साल बढ़ती जा रही महिलाओं की उम्मीदवारी
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भोपाल। प्रदेश में विधानसभा चुनाव का इतिहास देखा जाए तो महिलाओं में भी चुनाव मैदान में उतरने की रूचि ज्यादा नजर आ रही है। राजनीतिक दलों ने भले ही आधी आबादी को 35 फीसदी टिकट नहीं दिए हों, मगर राजनीतिक दलों और निर्दलीय रूप से महिला प्रत्याशियों की संख्या हर साल चुनाव में बढ़ती जा रही हैं 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में जहां महिला प्रत्याशियों की संख्या 76 थी, वहीं पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में इनकी संख्या 250 थी। वहीं इस साल पांच थर्ड जेंडर भी मैदान में उतरे थे।
प्रदेश का चुनावी इतिहास बताता है कि सभी राजनीतिक दल महिला प्रत्याशियों को मैदान में उतारते जरूर हैं, मगर 35 फीसदी आरक्षण की बात करने वाले ये दल कभी भी इस बात पर खरे नहीं उतरे की उन्होंने विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में कभी महिलाओं को 35 फीसदी टिकट वितरित किए हों। हां यह जरूर है कि कुछ संख्या में वे महिला प्रत्याशियों को टिकट देते हैं। वहीं चुनाव में देखा जाए तो हर साल महिलाओं की रूचि ज्यादा नजर आ रही है। उनकी संख्या में लगातार साल-दर-साल प्रत्याशी के रूप में बढ़ती जा रही है। वहीं थर्ड जेंडरों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। 1998 के चुनाव में शबनम मौसी ने पहली बार चुनाव लड़कर थर्ड जेंडर में कुछ ऐसी चेतना जगाई कि 2018 के विधानसभा चुनाव में पांच विधानसभा सीटों से ये मैदान में उतरे थे। हालांकि जीत किसी को भी नहीं मिली।
विधानसभा चुनाव में महिलाओं की उम्मीदवारों हर चुनाव में बढ़ती नजर आ रही है। 1985 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में 76 महिला प्रत्याशी मैदान में उतरी थी। इसके बाद हर चुनाव में इनकी संख्या में इजाफा होता गया। प्रदेश में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में इनकी संख्या बढ़कर 250 हो गई थी।
कब कितनी महिलाओं ने लड़ा चुनाव
वर्ष महिला उम्मीदवार
1985 76
1990 150
1993 164
1998 181
2003 199
2008 221
2013 200
2018 250
प्रदेश का चुनावी इतिहास बताता है कि सभी राजनीतिक दल महिला प्रत्याशियों को मैदान में उतारते जरूर हैं, मगर 35 फीसदी आरक्षण की बात करने वाले ये दल कभी भी इस बात पर खरे नहीं उतरे की उन्होंने विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में कभी महिलाओं को 35 फीसदी टिकट वितरित किए हों। हां यह जरूर है कि कुछ संख्या में वे महिला प्रत्याशियों को टिकट देते हैं। वहीं चुनाव में देखा जाए तो हर साल महिलाओं की रूचि ज्यादा नजर आ रही है। उनकी संख्या में लगातार साल-दर-साल प्रत्याशी के रूप में बढ़ती जा रही है। वहीं थर्ड जेंडरों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। 1998 के चुनाव में शबनम मौसी ने पहली बार चुनाव लड़कर थर्ड जेंडर में कुछ ऐसी चेतना जगाई कि 2018 के विधानसभा चुनाव में पांच विधानसभा सीटों से ये मैदान में उतरे थे। हालांकि जीत किसी को भी नहीं मिली।
विधानसभा चुनाव में महिलाओं की उम्मीदवारों हर चुनाव में बढ़ती नजर आ रही है। 1985 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में 76 महिला प्रत्याशी मैदान में उतरी थी। इसके बाद हर चुनाव में इनकी संख्या में इजाफा होता गया। प्रदेश में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में इनकी संख्या बढ़कर 250 हो गई थी।
कब कितनी महिलाओं ने लड़ा चुनाव
वर्ष महिला उम्मीदवार
1985 76
1990 150
1993 164
1998 181
2003 199
2008 221
2013 200
2018 250