परिणाम को प्रभावित करने वाले साबित हुए छोटे दल
जीत से ज्यादा समीकरण बिगाड़ने की रही इनकी भूमिका
भोपाल। मतगणना के पहले प्रदेश में छोटे दलों की स्थिति एक बार फिर पिछले चुनावों की तरह इस बार भी आंकी जा रही है। इन दलों के प्रत्याशी केवल भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की जीत-हार को प्रभावित कर सकते हैं, खुद की जीत के लिए उतने आश्वस्त नजर नहीं आ रहे हैं।
प्रदेश में इस बार भी हर चुनाव की तरह छोटे दलों सपा, बसपा, गोंगपा, आम आदमी पार्टी ने अपने दम पर चुनाव लड़ते हुए सरकार में भागीदारी की बात कही थी। उन्होंने दावा किया था कि उनके बिना भाजपा और कांग्रेस सरकार नहीं बना सकेंगे। उनका यह दावा उसी वक्त निराधार नजर आया था, जब इन दलों को पूरे 230 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी ही नहीं मिले थे। हालांकि इस बार बसपा ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से गठबंधन कर अजा और अजजा वर्ग को साधने का प्रयास किया, मगर उसका असर कोई खास नजर नहीं आया। इस वर्ग की आरक्षित सीटों पर इन दलों को अपनी विचारधारा वाले प्रत्याशी ही नहीं मिले। ऐसे में फिर यह सवाल उठ रहा है कि मतगणना के दौरान इनकी स्थिति क्या रहेगी।
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो एक बार फिर इन दलों की स्थिति प्रदेश में उसी तरह रहेगी, जिस तरह अब तक रहती आई है। ये दल दस सीटों के अंदर ही सिमटते नजर आ रहे हैं। नतीजे आने के बाद तीसरी पार्टियां की स्थिति 2013 और 2018 के विधानसभा चुनावों में हुआ था, ठीक उसी तरह नजर आएगी। बसपा और निर्दलीय उम्मीदवार कई सीटों के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन कई सीटों पर उनके जीतने की संभावना कम है।
दहाई के आंकड़े को भी नहीं छू पाते छोटे दल
छत्तीसगढ़ के मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद 2003 के चुनाव में अन्य दलों को 14 सीटें मिलीं और सपा को सात सीटें मिली थी। 2008 में उन्होंने 16 सीटें जीतीं, जब बसपा को सात सीटें मिलीं और उमा भारती के राजनीतिक संगठन जनशक्ति, जिसने पहली बार चुनाव लड़ा, ने पांच सीटें जीतीं। वहीं, 2013 में इन पार्टियों को सिर्फ सात सीटें मिली थीं। बसपा को सिर्फ चार सीटें मिलीं और सपा अपना खाता भी नहीं खोल सकी। क्योंकि इन सभी चुनावों में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला था, इसलिए सरकार बनाने में इन पार्टियों की कोई भूमिका नहीं थी. 2018 के चुनाव में अन्य पार्टियों ने सात सीटें जीतीं। बसपा को दो, सपा को एक और निर्दलियों को चार सीटें मिलीं। कांग्रेस को बहुमत के आंकड़े से दो सीटें कम मिलने से इन पार्टियों का महत्व बढ़ गया। फिर भी, अन्य दलों के कई सीटें जीतने और सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की संभावना कम दिखती है।