संघर्ष ही करते नजर आए छोटे दल और निर्दलीय
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लोकसभा चुनाव में लगातार गिरता जा रहा ग्राफ
भोपाल। लोकसभा चुनाव में राज्य के छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार अब तक अपने वजूद के लिए संघर्श ही करते नजर आए हैं। बसपा को छोड़ दिया जाए तो सभी छोटे दलों का अभी तक प्रदेश में खाता भी नहीं खुला है। हर चुनाव में जीत का दावा करने वाले इन दलों के प्रत्याशी चुनाव दर चुनाव अपना मत प्रतिशत भी गिराया है।
प्रदेश की 29 सीटों के लिए एक बार फिर चुनावी चौसर बिछ गई है। भाजपा ने सभी 29 स्थानों पर प्रत्याशी मैदान में उतारकर सक्रियता बढ़ा दी है। वहीं कांग्रेस अब भी पूरे प्रत्याशी मैदान में नहीं उतार पाई है। कांग्रेस ने अब तक 22 स्थानों पर प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं, जबकि एक सीट पर गठबंधन के तहत समाजवादी पार्टी को प्रत्याशी मैदान में उतारना है। बसपा भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर चुकी है, मगर प्रत्याशी चयन को लेकर वह भी जद्दोजहद ही कर रही है। एक सूची जारी कर बसपा ने अभी तक सात सीटों पर उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।
प्रदेश में हर लोकसभा चुनाव में छोटे दलों के अलावा निर्दलीय भी बड़ी संख्या में मैदान में उतरते रहे हैं, मगर अब तक इन दलों और निर्दलीय का कोई खास प्रभाव नजर नहीं आया है। ये दल जीत के लिए संघर्श की करते नजर आए हैं। सिर्फ बसपा ही अब तक प्रदेश में चार मर्तबा अपने उम्मीदवार जीता चुकी है, जबकि सपा और अन्य दलों को अब तक जीत नहीं मिली है। वहीं निर्दलीय भी अपना प्रभाव नहीं दिखा पाए हैं। प्रदेश में बसपा, सपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का मत प्रतिशत भी लगातार गिरा है। वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों की बात करें तो उनका प्रतिशत भी कोई खास नजर नहीं आया है। साफ है छोटी पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशियों के लिए मध्यप्रदेश में अपनी जगह बनाना आसान नहीं है।
कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी करने में रहते हैं
छोटे दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों के कारण भाजपा को जितना नुकसान नहीं होता, उससे ज्यादा नुकसान इन दलों के प्रत्याशी कांग्रेस को पहुंचाते रहे हैं। खासकर विंध्य, बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल अंचल में इन दलों के कारण कांग्रेस को जूझना पड़ा है। वहीं महाकौशल और मालवा के आदिवासी बहुल संसदीय क्षेत्रों में आदिवासी वर्ग का नेतृत्व करने वाले दल कांग्रेस के लिए मुसीबत बनते रहे हैं।
लोस चुनाव मत प्रतिशत
1996 17.57
1998 3.35
1999 2.54
2004 6.29
2009 6.7
2014 4.22
2019 4.31
भोपाल। लोकसभा चुनाव में राज्य के छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार अब तक अपने वजूद के लिए संघर्श ही करते नजर आए हैं। बसपा को छोड़ दिया जाए तो सभी छोटे दलों का अभी तक प्रदेश में खाता भी नहीं खुला है। हर चुनाव में जीत का दावा करने वाले इन दलों के प्रत्याशी चुनाव दर चुनाव अपना मत प्रतिशत भी गिराया है।
प्रदेश की 29 सीटों के लिए एक बार फिर चुनावी चौसर बिछ गई है। भाजपा ने सभी 29 स्थानों पर प्रत्याशी मैदान में उतारकर सक्रियता बढ़ा दी है। वहीं कांग्रेस अब भी पूरे प्रत्याशी मैदान में नहीं उतार पाई है। कांग्रेस ने अब तक 22 स्थानों पर प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं, जबकि एक सीट पर गठबंधन के तहत समाजवादी पार्टी को प्रत्याशी मैदान में उतारना है। बसपा भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर चुकी है, मगर प्रत्याशी चयन को लेकर वह भी जद्दोजहद ही कर रही है। एक सूची जारी कर बसपा ने अभी तक सात सीटों पर उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।
प्रदेश में हर लोकसभा चुनाव में छोटे दलों के अलावा निर्दलीय भी बड़ी संख्या में मैदान में उतरते रहे हैं, मगर अब तक इन दलों और निर्दलीय का कोई खास प्रभाव नजर नहीं आया है। ये दल जीत के लिए संघर्श की करते नजर आए हैं। सिर्फ बसपा ही अब तक प्रदेश में चार मर्तबा अपने उम्मीदवार जीता चुकी है, जबकि सपा और अन्य दलों को अब तक जीत नहीं मिली है। वहीं निर्दलीय भी अपना प्रभाव नहीं दिखा पाए हैं। प्रदेश में बसपा, सपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का मत प्रतिशत भी लगातार गिरा है। वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों की बात करें तो उनका प्रतिशत भी कोई खास नजर नहीं आया है। साफ है छोटी पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशियों के लिए मध्यप्रदेश में अपनी जगह बनाना आसान नहीं है।
कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी करने में रहते हैं
छोटे दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों के कारण भाजपा को जितना नुकसान नहीं होता, उससे ज्यादा नुकसान इन दलों के प्रत्याशी कांग्रेस को पहुंचाते रहे हैं। खासकर विंध्य, बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल अंचल में इन दलों के कारण कांग्रेस को जूझना पड़ा है। वहीं महाकौशल और मालवा के आदिवासी बहुल संसदीय क्षेत्रों में आदिवासी वर्ग का नेतृत्व करने वाले दल कांग्रेस के लिए मुसीबत बनते रहे हैं।
लोस चुनाव मत प्रतिशत
1996 17.57
1998 3.35
1999 2.54
2004 6.29
2009 6.7
2014 4.22
2019 4.31