बसपा, निर्दलीय प्रत्याशियों की बढ़ी उम्मीदें
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सरकार में सहभागिता के देख रहे सपने
भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए 17 नवंबर को हुए मतदान के बाद और मतगणना के पहले आए एग्जिट पोल ने प्रदेश के बसपा और निर्दलीय प्रत्याशियों की उम्मीदें बढ़ा दी है। वैसे भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने दम पर सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं, मगर एग्जिट पोल में कुछ पोल इस बात के संकेत दे रहे हैं कि 2018 के परिणामों की पुनरावृत्ति हो सकती है। इसे लेकर बसपा और निर्दलीय प्रत्याशियों में उम्मीदें जागी है।
प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल टिकट वितरण के बाद अपने लोगों से ज्यादा घिरते नजर आए थे। दोनों ही दलों के कई नेताओं ने बसपा, आम आदमी पार्टी का दामन थामा और मैदान में उतर गए थे। इसके अलावा कुछ प्रत्याशी ऐसे भी थे, जिन्होंने इन छोटे दलों पर भरोसा नहीं जताया और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। इन प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में उतरने से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की समस्याएं कम होने के बजाय बढ़ी। शुरूआत में इन्हें खासकर निर्दलीयरूप में उतरे नाराज नेताओं को मनाने का प्रयास किया गया, मगर जब ये नहीं माने तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के लिए ये चुनौती बनते साबित हुए। करीब दस से ज्यादा स्थानों पर अपने बागी नेताओं जो निर्दलीय रूप में मैदान में उतरे थे, उन्होंने अपने ही साथियों के सामने चुनौती खड़ी की।
दूसरी और बसपा को भी अपने छह से दस प्रत्याशियों पर भरोसा है। बसपा नेता यह मान रहे हैं कि उसके ये प्रत्याशी भाजपा और कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। परिणाम उसके पक्ष में भी आ सकता है। इस परिस्थिति को देख और एग्जिट पोल आने के बाद बसपा नेताओं की उम्मीद भी जागी है। प्रदेश के बसपा नेताओं को अब उम्मीद है कि बिना उनकी सहभागिता के सरकार नहीं बनेगी। हालांकि यह तो 3 दिसंबर को परिणाम आने के बाद पता चलेगा कि सरकार किसी और कैसी बन रही है। फिलहाल तो बसपा और भाजपा और कांग्रेस ने बागी होकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की उम्मीद जागी है। इन्हें इस बात की उम्मीद है कि भाजपा और कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला तो उनके सहारे के बिना सरकार नहीं बनेगी।
गौरतलब है कि इस बार चुना में यह नजर भी आया है कि निर्दलियों का काफी दबदवा रहा है। क्योंकि भाजपा-कांग्रेस से नाराज और टिकट नहीं मिलने के चलते कई दिग्गज नेता चुनावी मैदान में डटे हुए है। प्रदेश की कई सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों की स्थिति काफी अच्छी मानी जा रही है। ऐसे में अगर भाजपा-कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर होती है तो निर्दलीय किंगमेकर की भूमिका में उभर सकते है।
2018 में भी हुई थी पूछ-परख
साल 2018 के विधानसभा चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार के सहयोग से कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। भले ही सरकार 15 महीने चली, लेकिन निर्दलीय किंगमेकर बनकर उभरे थे। साल 2018 में कांग्रेस को 114 सीटें मिली थी। वही भाजपा को 109 सीटें मिली थी। जबकि बसपा को दो, सपा को एक और चार निर्दलीय चुनाव जीते थे। इस चुनाव में वारासिवनी से चुनाव जीते प्रदीप जायसवाल को मंत्री भी बनाया गया था। इसके बाद जब भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें खनिज निगम का अध्यक्ष बनाया था। वहीं इस चुनाव में बसपा के दो विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। बसपा ने भी कमलनाथ सरकार को समर्थन था, लेकिन वह सरकार में शामिल नहीं हुई थी। बसपा ने बाहर से रहते हुए समर्थन दिया था।
भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए 17 नवंबर को हुए मतदान के बाद और मतगणना के पहले आए एग्जिट पोल ने प्रदेश के बसपा और निर्दलीय प्रत्याशियों की उम्मीदें बढ़ा दी है। वैसे भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने दम पर सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं, मगर एग्जिट पोल में कुछ पोल इस बात के संकेत दे रहे हैं कि 2018 के परिणामों की पुनरावृत्ति हो सकती है। इसे लेकर बसपा और निर्दलीय प्रत्याशियों में उम्मीदें जागी है।
प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल टिकट वितरण के बाद अपने लोगों से ज्यादा घिरते नजर आए थे। दोनों ही दलों के कई नेताओं ने बसपा, आम आदमी पार्टी का दामन थामा और मैदान में उतर गए थे। इसके अलावा कुछ प्रत्याशी ऐसे भी थे, जिन्होंने इन छोटे दलों पर भरोसा नहीं जताया और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। इन प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में उतरने से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की समस्याएं कम होने के बजाय बढ़ी। शुरूआत में इन्हें खासकर निर्दलीयरूप में उतरे नाराज नेताओं को मनाने का प्रयास किया गया, मगर जब ये नहीं माने तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के लिए ये चुनौती बनते साबित हुए। करीब दस से ज्यादा स्थानों पर अपने बागी नेताओं जो निर्दलीय रूप में मैदान में उतरे थे, उन्होंने अपने ही साथियों के सामने चुनौती खड़ी की।
दूसरी और बसपा को भी अपने छह से दस प्रत्याशियों पर भरोसा है। बसपा नेता यह मान रहे हैं कि उसके ये प्रत्याशी भाजपा और कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। परिणाम उसके पक्ष में भी आ सकता है। इस परिस्थिति को देख और एग्जिट पोल आने के बाद बसपा नेताओं की उम्मीद भी जागी है। प्रदेश के बसपा नेताओं को अब उम्मीद है कि बिना उनकी सहभागिता के सरकार नहीं बनेगी। हालांकि यह तो 3 दिसंबर को परिणाम आने के बाद पता चलेगा कि सरकार किसी और कैसी बन रही है। फिलहाल तो बसपा और भाजपा और कांग्रेस ने बागी होकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की उम्मीद जागी है। इन्हें इस बात की उम्मीद है कि भाजपा और कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला तो उनके सहारे के बिना सरकार नहीं बनेगी।
गौरतलब है कि इस बार चुना में यह नजर भी आया है कि निर्दलियों का काफी दबदवा रहा है। क्योंकि भाजपा-कांग्रेस से नाराज और टिकट नहीं मिलने के चलते कई दिग्गज नेता चुनावी मैदान में डटे हुए है। प्रदेश की कई सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों की स्थिति काफी अच्छी मानी जा रही है। ऐसे में अगर भाजपा-कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर होती है तो निर्दलीय किंगमेकर की भूमिका में उभर सकते है।
2018 में भी हुई थी पूछ-परख
साल 2018 के विधानसभा चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार के सहयोग से कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। भले ही सरकार 15 महीने चली, लेकिन निर्दलीय किंगमेकर बनकर उभरे थे। साल 2018 में कांग्रेस को 114 सीटें मिली थी। वही भाजपा को 109 सीटें मिली थी। जबकि बसपा को दो, सपा को एक और चार निर्दलीय चुनाव जीते थे। इस चुनाव में वारासिवनी से चुनाव जीते प्रदीप जायसवाल को मंत्री भी बनाया गया था। इसके बाद जब भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें खनिज निगम का अध्यक्ष बनाया था। वहीं इस चुनाव में बसपा के दो विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। बसपा ने भी कमलनाथ सरकार को समर्थन था, लेकिन वह सरकार में शामिल नहीं हुई थी। बसपा ने बाहर से रहते हुए समर्थन दिया था।