अजजा की आरक्षित सीटें बढ़ा रही भाजपा की चिंता
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आदिवासी वर्ग को साधने की कवायद
भोपाल। प्रदेश में मालवा और महाकौशल में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटें भाजपा के लिए अब भी चिंता का कारण बनी हुई है। हालांकि 2019 के चुनाव में भाजपा का इन सीटों पर कब्जा रहा है, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में घटे प्रभाव ने इन सीटों को लेकर भाजपा की चिंता को बढ़ा दिया है।
लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा रणनीति के तहत सक्रियता दिखा रही है। हर वर्ग को साधने की उसके नेता कवायद कर रहे हैं। वहीं अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटों ने भाजपा की चिंता को बढ़ा दिया है। भाजपा लोकसभा चुनाव के तारीख घोशित होने के पहले से ही इस वर्ग को लेकर चिंतित नजर आई थी। इसके चलते मालवा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक कार्यक्रम भी वह करा चुकी है। मालवा अंचल की रतलाम, धार और खरगौन सीटों पर भाजपा पूरी तरह से सुनिश्चित नहीं कर पा रही है कि इन सीटों पर उसका जादू अन्य सीटों की तरह चल पाएगा। यही वजह है कि उसके नेता लगातर इन सीटों पर फोकस कर बड़े कार्यक्रम करते नजर आ रहे हैं। मालवा के अलावा महाकौशल में मंडला सीट को भी भाजपा कमजोर आंक रही है। इस सीट पर विधानसभा चुनाव हारे फग्गन सिंह कुलस्ते को मैदान में उतारा है, मगर उनकी स्थिति को लेकर संगठन अभी पूरी तरह से मजबूत नहीं मान रहा है। वैसे इस सीट पर अन्य छोटे दलों खासकर आदिवासी वर्ग का नेतृत्व करने वाले दलों के उम्मीदवार खड़े होने से भाजपा इसे वोट विभाजन के तहत अपने फायदे में देख रही है।
आदिवासी वर्ग के बीच भाजपा चाहकर भी पैठ बनाने में सफल नजर नहीं आई है। मालवा-निमाड़ अंचल उसकी चिंता का बढ़ा कारण है। विधानसभा के 2023 के चुनाव में इस अंचल की आदिवासी वर्ग की आरक्षित 22 सीटों में से 11 सीटों पर कांग्रेस अपना कब्जा जमा चुकी है। भाजपा चाहकर भी कांग्रेस को इस अंचल में आदिवासी वर्ग की आरक्षित सीटों पर कमजोर नहीं कर पाई है। इसके पीछे जय आदिवासी युवा संगठन कांग्रेस के साथ होना है। इस संगठन ने कांग्रेस को मजबूती दी है। इसके अलावा छिंदवाड़ा, गुना, सतना, सीधी और बालाघाट संसदीय सीटों की कुछ विधानसभा सीटों पर भी आदिवासी मतदाता का खासा प्रभाव है, जो कांग्रेस के पक्ष में नजर आया है।
संघ के सर्वे में भी कमजोर है ये सीटें
सूत्रों की माने तो संघ की बढ़ी सक्रियता का एक कारण यह भी है कि संघ के अपने सर्वे में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित इन सीटों को संघ ने कमजोर आंका है। खासकर रतलाम-झाबुआ, मंडला और धार सीटें संघ के सर्वे में कमजोर मानी गई है। इसके बाद इन सीटों पर फोकस कर संघ ने मैदानी सक्रियता को बढ़ाया है।
भोपाल। प्रदेश में मालवा और महाकौशल में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटें भाजपा के लिए अब भी चिंता का कारण बनी हुई है। हालांकि 2019 के चुनाव में भाजपा का इन सीटों पर कब्जा रहा है, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में घटे प्रभाव ने इन सीटों को लेकर भाजपा की चिंता को बढ़ा दिया है।
लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा रणनीति के तहत सक्रियता दिखा रही है। हर वर्ग को साधने की उसके नेता कवायद कर रहे हैं। वहीं अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटों ने भाजपा की चिंता को बढ़ा दिया है। भाजपा लोकसभा चुनाव के तारीख घोशित होने के पहले से ही इस वर्ग को लेकर चिंतित नजर आई थी। इसके चलते मालवा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक कार्यक्रम भी वह करा चुकी है। मालवा अंचल की रतलाम, धार और खरगौन सीटों पर भाजपा पूरी तरह से सुनिश्चित नहीं कर पा रही है कि इन सीटों पर उसका जादू अन्य सीटों की तरह चल पाएगा। यही वजह है कि उसके नेता लगातर इन सीटों पर फोकस कर बड़े कार्यक्रम करते नजर आ रहे हैं। मालवा के अलावा महाकौशल में मंडला सीट को भी भाजपा कमजोर आंक रही है। इस सीट पर विधानसभा चुनाव हारे फग्गन सिंह कुलस्ते को मैदान में उतारा है, मगर उनकी स्थिति को लेकर संगठन अभी पूरी तरह से मजबूत नहीं मान रहा है। वैसे इस सीट पर अन्य छोटे दलों खासकर आदिवासी वर्ग का नेतृत्व करने वाले दलों के उम्मीदवार खड़े होने से भाजपा इसे वोट विभाजन के तहत अपने फायदे में देख रही है।
आदिवासी वर्ग के बीच भाजपा चाहकर भी पैठ बनाने में सफल नजर नहीं आई है। मालवा-निमाड़ अंचल उसकी चिंता का बढ़ा कारण है। विधानसभा के 2023 के चुनाव में इस अंचल की आदिवासी वर्ग की आरक्षित 22 सीटों में से 11 सीटों पर कांग्रेस अपना कब्जा जमा चुकी है। भाजपा चाहकर भी कांग्रेस को इस अंचल में आदिवासी वर्ग की आरक्षित सीटों पर कमजोर नहीं कर पाई है। इसके पीछे जय आदिवासी युवा संगठन कांग्रेस के साथ होना है। इस संगठन ने कांग्रेस को मजबूती दी है। इसके अलावा छिंदवाड़ा, गुना, सतना, सीधी और बालाघाट संसदीय सीटों की कुछ विधानसभा सीटों पर भी आदिवासी मतदाता का खासा प्रभाव है, जो कांग्रेस के पक्ष में नजर आया है।
संघ के सर्वे में भी कमजोर है ये सीटें
सूत्रों की माने तो संघ की बढ़ी सक्रियता का एक कारण यह भी है कि संघ के अपने सर्वे में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित इन सीटों को संघ ने कमजोर आंका है। खासकर रतलाम-झाबुआ, मंडला और धार सीटें संघ के सर्वे में कमजोर मानी गई है। इसके बाद इन सीटों पर फोकस कर संघ ने मैदानी सक्रियता को बढ़ाया है।