भ्रष्टाचार मामलों में अभियोजन स्वीकृति के लिए तय की समय-सीमा
भोपाल। मध्यप्रदेश में अब भ्रष्ट अफसर-कर्मचारी प्रकरण दर्ज होने के बाद अधिक समय तक अभियोजन से नहीं बच पाएंगे। अभियोजन पर सहमति या असहमति के लिए सरकार ने 3 माह की अवधि तय कर दी है। यही नहीं अब हर मामला सीधे विभाग नहीं आएगा, बल्कि नियुक्तिकर्ता अधिकारी ही सहमति या असहमति दे सकेंगे। हर अभियोजन स्वीकृति में विधि विभाग का अभिमत अनिवार्य होगा।
अब भ्रष्टाचार के मामलों में अभियोजन स्वीकृति सीधे नियुक्तिकर्ता अधिकारी द्वारा दी जा सकेगी। उदाहरण के लिए, यदि किसी पंचायत सचिव के खिलाफ प्रकरण दर्ज होता है, तो जिला पंचायत के सीईओ अभियोजन की स्वीकृति या अस्वीकृति दे सकेंगे। इसके लिए विभाग की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी। बता दें, पहले की व्यवस्था थी कि हर प्रकरण में विभाग की सहमति जरूरी होती थी, जिससे सभी छोटे-बड़े मामले सरकार तक पहुंचते थे। हर मामले में विधि विभाग की राय लेना अब जरूरी होगा। यदि नियुक्तिकर्ता अधिकारी अभियोजन स्वीकृति से असहमत हैं, तो मामला विधि विभाग को भेजा जाएगा। इसके बाद विधि विभाग अपनी सिफारिश संबंधित विभाग को देगा। यदि नियुक्तिकर्ता अधिकारी और विभाग किसी निर्णय पर सहमत नहीं होते, तो मामला कैबिनेट को भेजा जाएगा। कैबिनेट को अब 45 दिनों के भीतर निर्णय लेना होगा। पूरी प्रक्रिया के लिए कुल 90 दिनों की सीमा तय की गई है। पहले कैबिनेट में निर्णय लेने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं थी।
यदि किसी अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ निजी परिवाद दायर होता है, तो संबंधित पक्ष को सुनवाई का मौका देना अनिवार्य होगा। सुनवाई के बाद प्रकरण को तीन महीने के भीतर निपटाना होगा। इन नए प्रावधानों का उद्देश्य भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई की प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाना है। अब तक अभियोजन स्वीकृति में देरी के कारण कई मामलों में दोषी अधिकारी कानूनी कार्रवाई से बच निकलते थे।