हार की खाई को पाटना चुनौती बना दिग्विजय सिंह के लिए
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विधानसभा चुनाव में आठ में से छह सीटों पर हारी थी कांग्रेस
भोपाल। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के लिए अपने गढ़ राघोगढ़ में विधानसभा चुनाव 2023 में मिली हार की खाई को पटना चुनौती बन गया है। विधानसभा चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र में आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से छह पर कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। मात्र दो सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी।
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने करीब तीन दशक बाद अपने गढ़ राजगढ़ में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए मैदानी मोर्चा संभाला है। सिंह ने सक्रियता भी बढ़ा दी है और कार्यकर्ता भी जुट गए हैं। वहीं भाजपा ने सिंह के गढ़ में सेंधमारी करने की रणनीति पर भी काम करना शुरू कर दिया है। संघ के निशाने पर भी सिंह का यह गढ़ है, इसके चलते संघ ने भी यहां सक्रियता बढ़ा दी है। वहीं राजगढ़ संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से छह पर पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह चुनाव हार चुके थे। कांग्रेस के केवल दो विधायक राघौगढ़ से जयवर्धन सिंह और सुसनेर से भैरोसिंह बापू दो ही चुनाव जीत पाए थे। विधानसभा चुनाव के परिणामों को लेकर राजगढ़ संसदीय सीट पर भाजपा अपने को मजबूत मान रही है। हालांकि भाजपा ने सक्रियता बढ़ाई है, मगर फिलहाल पूरा फोकस छिंदवाड़ा पर होने के कारण भाजपा की सक्रियता यहां उतनी नजर नहीं आई है।
पिछले दो चुनावों में सिंह के उम्मीदवारों को मिली है हार
राजगढ़ संसदीय सीट पर यह माना जाता है कि दिग्विजय सिंह ही प्रत्याशी तय करते हैं। प्रत्याशी चयन के बाद उनकी सक्रियता भी नजर आती है। लेकिन पिछले दो चुनाव के परिणाम यह बता रहे हैं कि यहां पर देशभर की तरह मोदी का जादू नजर आया है। पिछले दोनों चुनावों 2014 और 2019 में दिग्विजय सिंह की पसंद के उम्मीदवारों को भी इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा है। 2014 के चुनाव में नारायण सिंह अमलाबे को लगातार दूसरी बार मैदान में उतारा, तो भाजपा के रोडमल ने इस चुनाव में अमलाबे को दो लाख 28 हजार के बड़े अंतर से हराया। इसके बाद 2019 के चुनाव में किले ने मोना सुस्तानी पर भरोसा जताया तो भाजपा ने फिर नागर को मैदान में उतारा था। उन्होंने भी करारी हार का सामना करना पड़ा था। मोना सुस्तानी को चार लाख से ज्यादा मतों से हार का सामना करना पड़ा था। अब मोना सुस्तानी ने भी भाजपा की सदस्यता ले ली है। वे खुद दिग्विजय सिंह के खिलाफ उन्हें हराने के लिए प्रचार करनी नजर आएंगी।
करेंगे पदयात्रा, चौपाल भी लगाएंगे
तीस साल बाद अपने गढ़ में लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला लेने के बाद अब दिग्विजय सिंह ने अपने हिसाब से चुनाव लड़ने की रणनीति तय की है। लंबे समय के बाद अब सीधे राजगढ़ के लोगों से जुड़ने के लिए उन्होंने पदयात्रा का सहारा लिया है। राजगढ़ की प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में वो एक दिन की यात्रा करेंगे, जो लगभग 20 से 30 किलोमीटर की होगी। जिसकी शुरुआत सुसनेर विधानसभा से होगी। पदयात्रा के अलावा इस दौरान नुक्कड़ सभाएं भी होंगी। वहीं रात्रि विश्राम जहां होगा, वहां पर चौपाल भी लगाई जाएगी।
भोपाल। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के लिए अपने गढ़ राघोगढ़ में विधानसभा चुनाव 2023 में मिली हार की खाई को पटना चुनौती बन गया है। विधानसभा चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र में आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से छह पर कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। मात्र दो सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी।
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने करीब तीन दशक बाद अपने गढ़ राजगढ़ में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए मैदानी मोर्चा संभाला है। सिंह ने सक्रियता भी बढ़ा दी है और कार्यकर्ता भी जुट गए हैं। वहीं भाजपा ने सिंह के गढ़ में सेंधमारी करने की रणनीति पर भी काम करना शुरू कर दिया है। संघ के निशाने पर भी सिंह का यह गढ़ है, इसके चलते संघ ने भी यहां सक्रियता बढ़ा दी है। वहीं राजगढ़ संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से छह पर पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह चुनाव हार चुके थे। कांग्रेस के केवल दो विधायक राघौगढ़ से जयवर्धन सिंह और सुसनेर से भैरोसिंह बापू दो ही चुनाव जीत पाए थे। विधानसभा चुनाव के परिणामों को लेकर राजगढ़ संसदीय सीट पर भाजपा अपने को मजबूत मान रही है। हालांकि भाजपा ने सक्रियता बढ़ाई है, मगर फिलहाल पूरा फोकस छिंदवाड़ा पर होने के कारण भाजपा की सक्रियता यहां उतनी नजर नहीं आई है।
पिछले दो चुनावों में सिंह के उम्मीदवारों को मिली है हार
राजगढ़ संसदीय सीट पर यह माना जाता है कि दिग्विजय सिंह ही प्रत्याशी तय करते हैं। प्रत्याशी चयन के बाद उनकी सक्रियता भी नजर आती है। लेकिन पिछले दो चुनाव के परिणाम यह बता रहे हैं कि यहां पर देशभर की तरह मोदी का जादू नजर आया है। पिछले दोनों चुनावों 2014 और 2019 में दिग्विजय सिंह की पसंद के उम्मीदवारों को भी इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा है। 2014 के चुनाव में नारायण सिंह अमलाबे को लगातार दूसरी बार मैदान में उतारा, तो भाजपा के रोडमल ने इस चुनाव में अमलाबे को दो लाख 28 हजार के बड़े अंतर से हराया। इसके बाद 2019 के चुनाव में किले ने मोना सुस्तानी पर भरोसा जताया तो भाजपा ने फिर नागर को मैदान में उतारा था। उन्होंने भी करारी हार का सामना करना पड़ा था। मोना सुस्तानी को चार लाख से ज्यादा मतों से हार का सामना करना पड़ा था। अब मोना सुस्तानी ने भी भाजपा की सदस्यता ले ली है। वे खुद दिग्विजय सिंह के खिलाफ उन्हें हराने के लिए प्रचार करनी नजर आएंगी।
करेंगे पदयात्रा, चौपाल भी लगाएंगे
तीस साल बाद अपने गढ़ में लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला लेने के बाद अब दिग्विजय सिंह ने अपने हिसाब से चुनाव लड़ने की रणनीति तय की है। लंबे समय के बाद अब सीधे राजगढ़ के लोगों से जुड़ने के लिए उन्होंने पदयात्रा का सहारा लिया है। राजगढ़ की प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में वो एक दिन की यात्रा करेंगे, जो लगभग 20 से 30 किलोमीटर की होगी। जिसकी शुरुआत सुसनेर विधानसभा से होगी। पदयात्रा के अलावा इस दौरान नुक्कड़ सभाएं भी होंगी। वहीं रात्रि विश्राम जहां होगा, वहां पर चौपाल भी लगाई जाएगी।