देश के चार राज्यों के नतीजे का महाराष्ट्र पर कितना असर पड़ेगा
देश के चार राज्यों के विधानसभाओं के चुनावों के नतीजे जिस तरह से सामने आए हैं उसका महाराष्ट्र की चुनावी राजनीति पर प्रतिकूल असर पड़ने वाला है. ये नतीजे महाराष्ट्र भाजपा के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है. भाजपा का मानना है कि मोदी का जादू बरकरार है. मोदी की गारंटी पर ही भाजपा महाराष्ट्र में 45 लोकसभा की सीटें और 200 विधानसभा की सीटें जीतने का सपना देखने लगी है. महाराष्ट्र में अगले साल लोकसभा के बाद विधानसभा के भी चुनाव होने वाले हैं और इन दोनों चुनावों में भाजपा के लिए एकमात्र मोदी ही चमत्कारी चेहरा है. इस समय भी महाराष्ट्र में भाजपानीत सरकार है जिसमें उसके साथ बंटी हुई शिवसेना और एनसीपी के गुट शामिल हैं. मुख्यमंत्री का पद शिवसेना के एकनाथ शिंदे संभाल रहे हैं. अजित गुट के एनसीपी के अजित पवार को उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री की जिम्मेदारी दी गई है. चार राज्यों के नतीजे आने के बाद शिंदे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुनगान करते हुए कहा है कि अब मन मन में मोदी हैं. मोदी के नाम पर महाराष्ट्र में भी भाजपा गठबंधन की नैया पार लगेगी. भाजपा गठबंधन के इस उत्साह के विपरीत विपक्ष के दमदार नेता और एनसीपी के प्रमुख शरद पवार इस नतीजों से हताश नहीं हैं बल्कि उन्होंने कहा है कि चार में से तीन राज्यों में भाजपा की जीत हुई है और इसे मोदी का प्रभाव माना जा सकता है. लेकिन 2024 में होने वाले चुनावों में इन नतीजों का असर नहीं पड़ने वाला है. महाराष्ट्र में भाजपा सत्ता में नहीं आएगी. शरद के इस विश्वास से महाराष्ट्र की चुनावी राजनीति को अलग नजरिए से देखा जा सकता है.
महाराष्ट्र राज्य की संस्कृति में हिंदी पट्टी का अच्छा खासा प्रभाव है. इसके साथ ही दक्षिण राज्यों का भी असर है. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के लोग मुंबई और महाराष्ट्र में अच्छी संख्या में रहते हैं. महाराष्ट्र से सटे राज्यों में कर्नाटक और तेलंगाना भी प्रभाव रखता है. महाराष्ट्र में उत्तर प्रदेश, उतराखंड, बिहार और गुजरात का भी प्रभुत्व है. इसलिए इन राज्यों में जब भी चुनाव होते हैं तो उसका असर महाराष्ट्र पर और जब महाराष्ट्र में चुनाव होता है तो उसका असर हिंदी पट्टी और दक्षिण के राज्यों पर भी देखा जाता है. इस समय जब तेलंगाना में चुनाव हुआ तो उससे सटे महाराष्ट्र के कुछ गांवों के लोगों ने तेलंगाना में जाकर वोट डाले हैं. अब तो एक भी वोट मायने रखता है और ऐसे वोट के बल पर कांग्रेस ने तेलंगाना में अपनी मौजूदगी दिखाई है. हालांकि, ये वोट डालने वाले कांग्रेस के वोटर नहीं थे. कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है और कर्नाटक के साथ अब तेलंगाना का असर महाराष्ट्र पर पड़ सकता है. लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना और एनसीपी को तोड़कर जिस तरह से गठबंधन तैयार किया है उससे भाजपा का अपना आत्मविश्वास बना हुआ है कि अगले चुनावों में मोदी को केंद्र की सत्ता दिलाने में अहम भूमिका निभाते हुए राज्य की सत्ता भी हासिल कर लेगी. भाजपा के इस आत्मविश्वास के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि हालिया ग्राम पंचायत चुनाव में भाजपा गठबंधन ने भारी बहुमत हासिल किया है यानि कि भाजपा शहरों के साथ गांवों में भी मजबूत हो रही है.
चार राज्यों के चुनावों के नतीजे से विपक्ष को सबक लेने की जरूरत है. उसे एकजुट होने की आवश्यकता है. चूंकि, अलग-अलग विचारधारा की 26 पार्टियों का महागठबंधन इंडिया है तो इसमें मतभिन्नता के अलावा बड़ी पार्टी होने का भी अहंकार शामिल है. ऐसे में इनमें एकजुटता बनाए रखने की सबसे बड़ी समस्या है. चार राज्यों के चुनावों में उस एकजुटता की कमी देखने को मिली और उसका नतीजा सबके सामने है. कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी से बेहतर तालमेल नहीं बना पाई जिससे कांग्रेस को मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता से दूर होना पड़ा. सीधे तौर पर यह कहना मुश्किल है कि इन दोनों पार्टियों के असहयोग के कारण भाजपा को फायदा मिला है. लेकिन इतना तो तय है कि विपक्ष की एकजुटता भाजपा पर भारी पड़ सकता है. मोदी की चमक फीकी पड़ सकती थी अगर विपक्ष में कांग्रेस ने एकजुटता के लिए नम्रता दिखाई होती. अब क्या हो सकता है जब चिड़िया चुग गई खेत.
महाराष्ट्र में विपक्ष को संभलने का मौका है. यहां इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि कैसे हिंदी पट्टी और दक्षिण के लोगों को मोदी की तरफ जाने से रोका जाए. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को विपक्ष के खेमे की तरफ लाया जाए. उधर कर्नाटक और तेलंगाना के लोगों का भी विश्वास जीतना होगा. इसके अलावा महाराष्ट्र में मोदी के राज्य गुजरात के लोग भी काफी संख्या में हैं. हिंदी पट्टी और गुजरात में मोदी का जादू चल रहा है. मोदी के करिश्मे को कम करना आसान नहीं है. वही करिश्मा महाराष्ट्र में भी कारगर हो सकता है. इसलिए विपक्ष को अपनी चुनावी रणनीति पर संभल कर काम करने की जरूरत है. भाजपा के लिए महाराष्ट्र बहुत अहम है. खासकर मोदी के लिए यह राज्य मायने रखता है. उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र ही दूसरा ऐसा राज्य है जहां लोकसभा की सीटें ज्यादा हैं. 48 में से 45 सीटों पर कब्जा करने का लक्ष्य भाजपा ने बनाया है. अगर यहां भाजपा को विपक्ष कमजोर करने में कामयाब होता है तो मोदी के लिए सत्ता में लौटना आसान नहीं हो सकता है. इसलिए महाराष्ट्र में भाजपा मजबूती से काम कर रही है. भाजपा गुपचुप तरीके से ऐसी रणनीति पर काम कर रही है जिससे अगले चुनावों में विपक्ष को चौंकने का ही मौका मिलेगा.
भाजपा ने महाराष्ट्र में जो सबसे अच्छा काम किया है वो यह कि शिवसेना और एनसीपी जैसी दो बड़ी पार्टियों को तोड़ दिया है और उसके विरोधी खेमे को अपने गठबंधन में शामिल कर लिया है. इसके बावजूद भाजपा के अंदर अब भी एक डर व्याप्त है कि अगर विपक्ष को कमजोर समझ लिया तो चुनावी मैदान में विपक्ष उस पर हावी हो सकता है. इसलिए भाजपा किसी भी सूरत में विपक्ष को कोई भी मौका देने के पक्ष में नहीं है. भाजपा अब भी बचे हुए विपक्ष को खत्म करने की योजना पर काम कर रही है. इधर विपक्ष में कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है जिसमें शिवसेना और एनसीपी की तरह बिखराव नहीं हुआ है. इससे कांग्रेस खुद को बड़ी पार्टी समझ रही है और दूसरी सहयोगी पार्टियों को कमजोर मान रही है. लेकिन कांग्रेस को तीन राज्यों में हार से सबक लेने की जरूरत है. अगर मोदी के खिलाफ इंडिया को खड़ा करना है तो कांग्रेस को अपनी सोच बदलनी पड़ेगी. प्रधानमंत्री पद का लालच मन से निकालना पड़ेगा और सीटों के बंटवारे में दरियादिली दिखानी पड़ेगी. महाराष्ट्र में भी इंडिया और महा विकास आघाड़ी में शामिल पार्टियों के बीच सीटों को लेकर तकरार है. कर्नाटक में जीत का भूत कांग्रेस पर सवार है. अब तेलंगाना की जीत से उसका भूत और नृत्य कर सकता है जिससे विपक्ष की एकजुटता पर सवाल खड़ा होगा और इसका फायदा भाजपा को हो सकता है. ऐसा नहीं है कि शिवसेना और एनसीपी की तरह कांग्रेस में बिखराव नहीं हुआ है तो कांग्रेस बहुत सुरक्षित पार्टी है. कांग्रेस भीतरघात की शिकार होती रहती है. ताजा में राजस्थान इसका बेहतर उदाहरण है. यह स्थिति कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र में भी बनी हुई है. कांग्रेस के कई नेता ईडी और आईटी के रेडार पर हैं जो चुनाव के वक्त निशाने पर आ सकते हैं और उनकी वजह से विपक्ष का चुनावी समीकरण बिगड़ सकता है. शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एनसीपी के शरद पवार विपक्ष को एकजुट करने में कितने कारगर साबित हो पाते हैं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. अभी ठाकरे और शरद अपनी ही बिखरी हुई पार्टी को मजबूत करने की कवायद में है. लेकिन विपक्ष के लिए भाजपा के खिलाफ मजबूती से खड़ा होने का मौका है. अगर विपक्ष 2024 के चुनावों को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए इस मौके को गंवाने से बचता है तो विपक्ष अपना बेहतर भविष्य भी देख सकता है.