राम मंदिर : कुछ और मुद्दे भी इससे ज़रूरी हैं
-राकेश दुबे
राम मंदिर : कुछ और मुद्दे भी इससे ज़रूरी हैं
और राहुल गांधी की यात्रा अब तक ३५००से अधिक किलोमीटर का फ़ासला तय कर चुकी है, उन्होंने देशवासियों को एक पत्र लिखा है और अपनी इस यात्रा को ‘तपस्या’ कहा है ।जब राहुल गांधी की यह ‘भारत जोड़ो यात्रा’ जब शुरू हुई तो बहुतों ने मज़ाक भी उड़ाया था और बार-बार इस आशय का संदेश देने की कोशिश की थी कि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी का यह दांव ‘सफल’ नहीं होगा।सफलता से उनका जो भी आशय तब जो भी रहा हो । इसने देश की राजनीति और ख़ास कर भाजपा में खलबली अवश्य मचा दी है। राहुल गांधी की छवि में अंतर आ रहा है, जो कांग्रेस पार्टी के लिए उत्साहवर्धक है और ख़ास कर भाजपा के लिए चिंता का विषय भी। वैसे यह कहना तो अभी मुश्किल है कि कांग्रेस पार्टी को इस यात्रा का कितना राजनीतिक लाभ मिलेगा अथवा यह जन-समर्थन आम चुनाव में वोटों में कितना बदलेगा?
जो कांग्रेस-विरोधी तब मज़ाक उड़ा रहे थे, अब उनका स्वर धीमा पड़ गया है। तब भाजपा के छोटे-बड़े कई नेता इस आशय के बयान दे रहे थे कि किस भारत को जोड़ने की बात राहुल गांधी कह रहे हैं, भारत को जोड़ना ही है तो उन्हें अफगानिस्तान में जाकर यह यात्रा करनी चाहिए! उनके कहने का मतलब साफ था कि भारत तो अफगानिस्तान से लेकर म्यांमार तक फैला था, इन देशों को भारत में जोड़ने की बात राहुल गांधी को करनी चाहिए। सच पूछा जाये तो आज यह सोच मज़ाक लगने लगा है।।यह सही है कि देश को जोड़ने की अपनी इस कोशिश को, राहुल गांधी चुनावी राजनीति से अलग करके दिखाना चाह रहे हैं, पर हकीकत यही है कि यह एक सोचा-समझा राजनीतिक दांव है। भाजपा को अब यह डर सताने लगा है कि कहीं यह दांव सफल न हो जाये!
इधर भाजपा ने अपने दांव शुरू कर दिये हैं। भाजपा की चुनावी रणनीति के सूत्रधार और देश के गृहमंत्री ने पिछले दिनों त्रिपुरा की एक ‘चुनावी रैली’ में ‘राहुल बाबा’ से कान खोलकर सुनने के लिए कहा है कि एक जनवरी, 2024 को प्रधानमंत्री मोदी अयोध्या में ‘भव्य राममंदिर’ का ‘लोकार्पण’ करेंगे। उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर बनने वाला राम मंदिर तो पूरा होना ही था, उसे लेकर अब इस तरह की बयानबाजी का मतलब यही है कि भाजपा को लग रहा है कि राम के सहारे ही उसकी नैया पार लग सकती है।
ऐसा लगता है कि 1 जनवरी, 2024 को, अर्थात् आम चुनाव वाले साल के पहले दिन प्रधानमंत्री मोदी भाजपा में अज्ञात होते जा रहे नेताओं यथा लाककृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती जैसे नेताओं को साथ लेकर ‘भव्य और गगन चुंबी’ राम-मंदिर में प्रवेश करें, इससे एक बार फिर उन्हें राम के नाम पर वोट मिल ही जाएँगे। यह सही है कि राम मंदिर का चुनावी-लाभ भी भाजपा लगातार उठाती रही है। दूसरी ओर उसका ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा भी सफल रहा है, पर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा ने धर्म के नाम पर बांटने की नीति का भी खूब लाभ उठाया है।
उदाहरण सामने है, गृहमंत्री अमितशाह ने जब त्रिपुरा में बाबर द्वारा मंदिर ढहाकार मस्जिद बनाने की बात कही तो तब वे यह कहना भी नहीं भूले कि कांग्रेस पार्टी ने आधी सदी से ज़्यादा समय तक अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को रोकने का काम किया है। यही नहीं, उन्होंने यह कहना भी ज़रूरी समझा कि अब मथुरा और काशी के विवाद को भी निपटाना है। आगामी आम चुनाव में भाजपा मंदिर के मुद्दे का पूरा लाभ उठाना चाहती है। संदेह है इससे एक बार फिर हिंदू-मुस्लिम के बीच दरारें बढ़ेंगी, दीवारे उठेंगी। यह स्थिति देश के लिए किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है, पर राजनीति में कब कुछ अनुचित माना गया है?
यूँ तो आम चुनाव अभी कुछ दूर हैं, पर नौ राज्यों में चुनाव बहुत नज़दीक है। यह देखना दिलचस्प होगा कि महंगाई और बेरोज़गारी जैसे ज़मीनी हकीकत वाले मुद्दों का मुकाबला भाजपा कैसे करेगी? देश में बेरोज़गार युवाओं की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। आंकड़ों से भले ही कुछ भी समझाने की कोशिश की जा रही हो, पर भूख का तर्क सबसे मज़बूत होता हैऔर होता जा रहा है । अस्सी करोड़ भारतीयों को मुफ्त राशन देने की योजना को एक साल के लिए और बढ़ा दिया गया है। इन ‘रेवड़ियों’ का लाभ भाजपा को मिल सकता है, पर यह सवाल तो पूछा ही जायेगा कि वे कैसी नीतियां हैं जिनके चलते देश की आधी से ज़्यादा आबादी को मुफ्त अनाज देने की ज़रूरत खत्म ही नहीं हो रही? देश की बड़ी आबादी को समुचित रोज़गार क्यों नहीं मिल पा रहा है ? यह स्थिति डरावनी विस्फोटक भी हो सकती है।