कथित सर्वे से तनाव में भाजपा-कांग्रेस के विधायक
-अरुण पटेल
-लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं
यह आलेख दैनिक समाचार पत्र सुबह सवेरे के 01 January 2023 अंक में प्रकाशित हुआ है
2022 का साल विदा हो गया है और नये साल का आगाज नई उम्मीदें तथा नई आशा की किरणें लेकर आ गया है, जिसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों को उम्मीद है कि आने वाला साल उनके लिए सुखद भविष्य लेकर आने वाला है। जहां तक भाजपा और कांग्रेस के विधायकों का सवाल है उन्हें उन तथाकथित सर्वेक्षणों ने तनाव में ला दिया है जिनमें उनके भविष्य को लेकर प्रतिकूल बातें उभरकर सामने आई हैं। 2023 का साल चुनावी साल है इसलिए पूरे साल भर राजनीतिक सरगर्मी और आरोप-प्रत्यारोपों के बाण पूरी गति से एक-दूसरे पर छोड़ने में राजनेता कोई कोर-कसर बाकी रखने वाले नहीं हैं। प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती के तेवर धीरे-धीरे तीखे होेते जा रहे हैं। शिवराज सरकार की शराबबंदी की नीति को लेकर जो विरोध के तीखे तेवर उन्होंने दिखाये थे उनमें अब बीते साल के गुजरते-गुजरते तल्खी कुछ अधिक ही बढ़ गई है इसलिए भाजपा के लिए अब सतर्क रहने की बारी है क्योंकि वे अब जो कुछ कह रही हैं भले ही उसको लेकर लाख सफाई सामने आये लेकिन उसका मूल स्वर भाजपा को नुकसान पहुंचाने वाला है। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर जहां मध्यप्रदेश में चेहरे लगभग साफ हो गए हैं और भाजपा की अगुवाई शिवराज सिंह चौहान करेंगे तो वहीं कांग्रेस की अगुवाई कमलनाथ के हाथ होगी। जहां तक पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ का सवाल है वहां अभी एक बात तो साफ हो गई है कि कांग्रेस की जीत का सारा दारोमदार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हाथ होगा तो भाजपा अभी तक किसी चेहरे को आगे नहीं कर पाई है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि चूंकि बघेल पिछड़ा वर्ग से आते हैं इसलिए भाजपा आदिवासी या दलित नेता पर दॉव लगा सकती है।
मध्यप्रदेश में 2023 फतेह करने और राज्य में पांचवीं बार अपनी सरकार बनाने के सपने संजो रही भाजपा के प्रदेश नेताओं व मंत्रियों तथा विधायकों को मैदानी सर्वे रिपोर्ट ने तनाव में ला दिया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अलग-अलग सर्वे करा चुके हैं और दोनों की रिपोर्ट में कमोवेश कोई खास अन्तर नहीं है। हाईकमान के सर्वे में सिंधिया समर्थकों सहित आधा सैकड़ा से अधिक भाजपा विधायकों की स्थिति डॉवाडोल बताई गई है। करीब एक दर्जन से अधिक मंत्रियों की भी कमोवेश अपने-अपने क्षेत्रों में हालत खस्ता है जिनमें आधे केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से आये और फिर से मंत्री बने उनके समर्थक शामिल हैं। माननीयों की चिन्ता का इससे बड़ा एक कारण यह भी है कि भाजपा मध्यप्रदेश में भी गुजरात फार्मूला लागू न कर दे। यदि वह फार्मूला लागू होता है तो कम से कम एक सैकड़ा नये चेहरे सामने आ सकते हैं और इतने ही पुराने चेहरों की सत्ता की राजनीति से विदाई हो सकती है। मध्यप्रदेश में कमोवेश पिछड़े वर्गों पर तो भाजपा की पकड़ मजबूत है लेकिन आदिवासी मतदाताओं की पहली पसंद 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा नहीं कांग्रेस रही है और लगभग यही स्थिति दलित मतदाताओं की रही है। सर्वे के अनुसार ग्वालियर-चम्बल के साथ विंध्य व महाकौशल अंचल में भी ज्यादा नुकसान होने की आशंका जताई गई है। मालवा अंचल की भी कुछ सीटें खतरे के निशान को पार कर रही हैं।
कमलनाथ का सर्वे बढ़ा रहा विधायकों की धड़कनें
हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के एक ट्वीट में इस बात से इन्कार किया गया है कि कांग्रेस पार्टी ने कोई सर्वे कराया है, लेकिन जो लोग कमलनाथ की कार्यशैली को भलीभांति जानते हैं वह मानते हैं कि कमलनाथ सर्वेक्षण पर ज्यादा भरोसा करते हैं। पार्टी विधायकों में अधिक उहापोह की स्थिति न हो इसलिए सर्वेक्षण संबंधी समाचार को भ्रामक एवं निराधार बताया जा रहा है और कहा गया है कि पार्टी ने ऐसा कोई सर्वेक्षण नहीं कराया है। कमलनाथ ने कहा है कि मैं इतना स्पष्ट करना चाहता हूं कि कांग्रेस पार्टी का एक-एक कार्यकर्ता मजबूती से कार्य कर रहा है, मध्यप्रदेश की जनता ने कांग्रेस पार्टी को ऐतिहासिक जनादेश देने का मन बना लिया है और आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी प्रचंड जीत हासिल करेगी। बढचढ़ कर दावे तो हर राजनेता करता रहता है लेकिन कमलनाथ का दावा हकीकत के कितने करीब है यह दिसम्बर 2023 में चुनाव नतीजों से पता चल जायेगा। नये साल में कांग्रेस की प्राथमिकता प्रत्याशियों के चयन का काम आरम्भ करने की होगी और सबसे पहले मौजूदा 96 विधायकों में से जिनके जीतने की संभावना होगी उन्हें हरी झंडी दी जायेगी ताकि उन्हें प्रचार के लिए पर्याप्त समय मिल सके। कमलनाथ द्वारा कराये गये कथित आंतरिक सर्वे में लगभग 70 मौजूदा विधायकों की जीत की संभावना बताई गई है। यदि चेहरे देखकर यह सर्वे नहीं किया गया है तो जीतने वाले विधायकों की संख्या 70 से लगभग एक दर्जन कम रहने की संभावना है। जिन 70 विधायकों को आंतरिक सर्वे में जीतते दिखाया गया है उनको जनवरी-फरवरी में ही विधानसभा के चुनाव में जुटने की तैयारी के संकेत दे दिए जाएंगे। सर्वे में 26 विधायकों की स्थिति जीत के अनुकूल नहीं पाई गई, इन सीटों पर पार्टी ने अभी से नये चेहरों की तलाश शुरु करने के संकेत दिये हैं। कमलनाथ की रणनीति यह है कि जून तक सभी सीटों पर प्रत्याशियों के नामों को हरी झंडी दे दी जाए। कांग्रेस पार्टी का यह भी प्रयास है कि विधानसभा क्षेत्रों में जिस नाम पर सहमति बने उसे ही प्रत्याशी बनाया जाए। इस बार कमलनाथ का प्रयास यह भी है कि केंद्रीय स्तर से कोई नाम नहीं थोपने दिया जाए और जिस नाम पर आम सहमति बने उसे ही प्राथमिकता दी जाए। कांग्रेस पहली बार इतनी जल्दी अपने उम्मीदवार तय करने जा रही है अन्यथा कांग्रेस पार्टी में तो अधिकांश क्षेत्रों में नामजदगी पर्चा दाखिल करने के एक दिन पूर्व तक प्रत्याशी को लेकर गहमागहमी बनी रहती थी। जिन 70 विधायकों को जीतने लायक समझा गया है उनमें से 44 के चुनाव जीतने की पूरी-पूरी संभावना बताई गई है। पार्टी में कुल 26 ऐसे विधायक हैं जिनकी रिपोर्ट पूरी तरह निराशाजनक है। कांग्रेस नगरीय निकाय चुनाव का फार्मूला विधानसभा चुनाव में भी अपनायेगी, जिसका आशय यह है कि विधानसभा क्षेत्र में आम सहमति बनाकर प्रत्याशी घोषित किया जायेगा। निकाय चुनाव में इस फार्मूले का अच्छा-खासा लाभ मिला था और पार्टी ने पांच महापौर के पद भाजपा से छीन लिए थे जिनमें ग्वालियर, मुरैना, रीवा, जबलपुर और छिंदवाड़ा शामिल हैं। उज्जैन एवं बुरहानपुर में कांग्रेस उम्मीदवारों ने अच्छी टक्कर दी और बहुत कम मतों से पराजित हुए थे।
और यह भी
पिछले कुछ दिनों से पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती फिर से अपनी बेबाकी और तीखे तेवरों के कारण सुर्खियों में हैं। छिंदवाड़ा में उन्होंने यह कहकर एक प्रकार से सनसनी फैला दी कि राम और हनुमान का नाम या फिर हिन्दू धर्म पर भाजपा का पेटेंट नहीं है और कोई भी व्यक्ति इन पर आस्था रख सकता है, अन्तर केवल इतना है कि इन पर हमारी आस्था राजनीतिक लाभ-हानि से परे होती है। कमलनाथ द्वारा बनाये गये छिंदवाड़ा के हनुमान मंदिर में उमा भारती पहुंची थीं। उन्होंने एक साथ कई ट्वीट जारी कर कहा कि लोकतंत्र में कोई भी समाज जाति और सम्प्रदाय किसी राजनीतिक दल का बंधक नहीं हो सकता। राम, तिरंगा, गंगा और गाय इन पर मेरी आस्था भाजपा ने तय नहीं की है यह पहले से ही मेरे अंदर मौजूद है। शराबबंदी भी इसी तरह की एक धारा है। इन बातों की लाइन मैंने खुद खींची है बाकी बातों में भाजपा जो तय करती है वही मैं करती हूं। उन्होंने कहा कि हम यह भ्रम न पालें कि सारा हिंदू समाज हमारा वोटर होगा। उमा भारती ने इससे पूर्व लोधी समाज के कार्यक्रम में कुछ दिन पहले यह कहते हुए कि मैं तो भाजपा के प्रति प्रतिबद्ध हूं उसके लिए वोट मांगने आऊंगी लेकिन लोधी समाज प्रतिबद्ध नहीं है और उसको मैं बंधन से मुक्त करती हूं। वह यह देखकर वोट करे कि कौन उनका हित कर रहा है, कौन उन्हें सम्मानित कर रहा है और कौन उन्हें अपमानित कर रहा है।