आदिवासी सीटों पर गैर राजनीतिक चेहरे
नगरीय निकाय की तर्ज पर कांग्रेस खेल सकती है दांव
भोपाल। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटें कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के लिए महत्वपूर्ण है। कांग्रेस 2018 के चुनाव की तरह इन सीटों पर परचम फहराना चाहती है तो भाजपा परिणाम अपने पक्ष में करने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस ने इस बार इन सीटों पर गैर राजनीतिक चेहरों को उतारने का मन बनाया है।
प्रदेश कांग्रेस लगातार आदिवासी वर्ग को फोकस करते हुए कार्यक्रम तय कर रही है। कांग्रेस ने विंध्य, महाकौशल और मालवा-निमाड़ अंचल पर फोकस करते हुए सम्मेलन करने की रणनीति भी तय की है। साथ ही इस बार के चुनाव में भी ज्यादा से ज्यादा आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर जीत हासिल करने की रणनीति पर काम कर रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह खुद इन सीटों पर चर्चा के बाद फैसले ले रहे हैं। 2018 के चुनाव में जब सत्ता में कांग्रेस की वापसी हुई थी तो इन सीटों पर कांग्रेस के विधायक ज्यादा संख्या में चुनाव जीते थे। प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से कांग्रेस के विधायक 30 सीटों पर जीत कर आए थे। इस परिणाम को देखते हुए कांग्रेस एक बार फिर इसी तरह के परिणाम की उम्मीद के साथ मैदान में उतरना चाह रही है।
जानकारी के अनुसार इस बार कांग्रेस ने इन सीटों पर प्रत्याशी चयन के लिए अलग रणनीति तैयार की है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस अधिक से अधिक आरक्षित सीटों पर समाजसेवी और अन्य व्यक्ति जो आदिवासी वर्ग के बीच लंबे समय से काम कर रहा है, उसे टिकट दिया जाए। कांग्रेस की रणनीति साफ है कि गैर राजनीतिक व्यक्ति को इन सीटों पर नहीं उतारा जाए। प्रदेश में हुए नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस ने एक नया प्रयोग किया था। इस प्रयोग के तहत कांग्रेस ने गैर राजनीतिक लोगों को नगरीय निकाय का टिकट दिया था। कांग्रेस के इस प्रयोग के सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले। पूरे प्रदेश में कांग्रेस के पांच महापौर बने जो गैर राजनीतिक रहे।