पूर्व सीएम और वरिष्ठ नेता येदियुरप्पा को लेकर पूरी सावधानी बरत रही भाजपा
बेंगलुरु । उस समय में जब कांग्रेस अपने शीर्ष नेताओं डी.के. शिवकुमार और पूर्व सीएम सिद्धारमैया के बीच संतुलन बना रही है, वहीं भाजपा आलाकमान कर्नाटक में लिंगायत वोट बैंक को बरकरार रखने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी की केंद्रीय संसदीय समिति के सदस्य बी.एस. येदियुरप्पा का समर्थन कर रहा है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि येदियुरप्पा को वश में करने और उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटने के लिए कहने तथा चुनाव से ठीक पहले तक उनकी उपेक्षा करने के बाद पार्टी आलाकमान अब उनके बारे में फैसला करने में सावधानी बरत रहा है।
येदियुरप्पा को करीब से जानने वाले चर्चा कर रहे हैं कि कैसे उन्होंने 2011 में भाजपा के श्रद्धेय नेता एल.के. आडवाणी को चुनौती दी थी जब अवैध खनन से संबंधित लोकायुक्त की रिपोर्ट में उनके खिलाफ कथित आरोपों के बाद येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए कहा गया था। उन्होंने नए सीएम की नियुक्ति पर भाजपा आलाकमान के फरमान को नहीं माना। उन्होंने अपनी पसंद के मुख्यमंत्री डी.वी. सदानंद गौड़ा को कुर्सी पर बैठाया। बाद में जुलाई 2012 में उन्होंने गौड़ा को पद से हटाकर जगदीश शेट्टार को मुख्यमंत्री बना दिया, जिससे भाजपा आलाकमान और उनके दुश्मनों को बहुत चिढ़ हुई।
येदियुरप्पा ने 10 दिसंबर 2012 को केजेपी पार्टी लांच की और चुनाव लड़ा। पार्टी 10 प्रतिशत के करीब वोट पाने में सफल रही और 2013 के विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा की हार का कारण बनी और कांग्रेस के बहुमत प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त हुआ। येदियुरप्पा की पार्टी 203 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिनमें छह पर उस जीत मिली थी और भाजपा को केवल 40 सीटों तक सीमित कर दिया था जबकि इससे पहले 2008 के विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा ने 110 सीटों पर जीत हासिल की थी।
कोरोना के चरम के दौरान, येदियुरप्पा ने तब्लीगी जमात विवाद की पृष्ठभूमि में मुसलमानों को निशाना बनाने की कोशिश करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी थी। बयान ने संघ परिवार और हिंदू कार्यकर्ताओं को नाराज कर दिया था। राज्य कार्यकारी समिति की बैठक के दौरान येदियुरप्पा ने कहा था कि केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता है। कर्नाटक में मुकाबला कड़ा है और उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से लोगों तक पहुंचने का आह्वान किया।
हालांकि, येदियुरप्पा चुप रहे जब उन्हें राज्य के साथ-साथ केंद्रीय नेतृत्व ने भी झिड़क दिया। कर्नाटक पहुंचने पर पीएम मोदी का स्वागत करते हुए उन्हें नहीं देखा गया था। जब उनके विरोधियों ने यह कहना शुरू किया कि भाजपा येदियुरप्पा से आगे बढ़ गई है, तब केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें केंद्रीय संसदीय समिति का सदस्य बना दिया। जैसे ही राज्य चुनाव के करीब आया, आलाकमान ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तो यहां तक कह गए कि अगली सरकार येदियुरप्पा की इच्छा के अनुसार आकार लेगी। येदियुरप्पा के साथ पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह नजर आए। पार्टी सूत्रों ने कहा कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई एक जन नेता के रूप में उभरने में विफल रहे हैं जिस कारण पार्टी को येदियुरप्पा के पास वापस जाना पड़ा। पार्टी 80 वर्षीय येदियुरप्पा के आवेगी स्वभाव को जानती है, जो वर्तमान में अपने बेटे बी.वाई. विजयेंद्र के राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं। पार्टी ने विजयेंद्र को उनकी इच्छा के अनुसार शिकारीपुरा सीट से टिकट दिया है। बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि फिलहाल येदियुरप्पा और पार्टी के बीच सब ठीक है।