शेयर बाज़ार में नई संहिता, इसे और व्यवस्थित करना होगा
अगले पखवाड़े यानि 1 मई, 2023 से एक नयी आचार संहिता लागू होने जा रही है जो गलत, भ्रामक, पूर्वग्रस्त अथवा झूठे दावों के बल पर निवेशकों को भ्रमित करने की संभावना को कम करेगी। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने निवेश सलाहकारों और शोध विश्लेषकों ने इस नई विज्ञापन संहिता का प्रस्ताव रखा है। इसे निवेश सलाहकारों और शोध विश्लेषकों के लिए मौजूदा आचार संहिता का एक अन्य परिशिष्ट माना जा सकता है।
यह नई संहिता आगामी 1 मई, 2023 से अस्तित्व में आएगी। इरादा ऐसे वक्तव्यों को खत्म करने का है जो अनुभव या ज्ञान की कमी का लाभ लेना चाहते हैं। ऐसे मेंसलाह है, निवेश सलाहकार या शोध विश्लेषकों को तकनीकी या विधिक भाषा अथवा जटिल भाषा के अतिशय इस्तेमाल से बचना चाहिए।उन्हें अतिशय विस्तार में जाने से बचना चाहिए और निवेशकों से तयशुदा प्रतिफल का वादा नहीं करना चाहिए। इसके अलावा म्युचुअल फंड की तरह, निवेश सलाहकारों अथवा शोध विश्लेषकों के विज्ञापनों अथवा संवाद में भी अब यह चेतावनी शामिल करनी होगी कि ‘प्रतिभूति बाजार में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है। निवेश से पहले सभी संबंधित दस्तावेजों को सावधानीपूर्वक पढ़ें।
सेबी ने अपनी प्रस्तावित संहिता में यह भी कहा है कि विज्ञापनों को जारी करने से पहले बाजार नियामक की मान्यताप्राप्त निगरानी संस्था से पूर्व स्वीकृति हासिल करनी होगी। इसके अलावा निवेश सलाहकार अथवा शोध विश्लेषक ऐसे खेल, लीग, योजनाओं अथवा प्रतिस्पर्धा का आयोजन नहीं कर सकते हैं, न ही उनमें भागीदारी कर सकते हैं जिसमें नकद धनराशि, मेडल, तोहफे आदि वितरित किए जाने हों।
यूँ तो यह संहिता बहुत व्यापक है और इसकी व्याख्या निवेशकों को सीधा व्यक्तिगत संदेश देने के लिए किया जा सकता है। इसमें वह हर संचार शामिल है जो निवेश सलाहकारों या शोध विश्लेषकों द्वारा या उनकी ओर से जारी किया जाता है। इसमें पैंफलेट, शोध रिपोर्ट, समाचार पत्र अथवा टेलीविजन विज्ञापन, मेल, इलेक्ट्रॉनिक संदेश संबंधी सामग्री और सोशल मीडिया मंच आदि शामिल हैं।
संहिता में निवेश सलाहकारों और शोध विश्लेषकों से कहा गया है कि वे झूठे, भ्रामक, पूर्वग्रह से ग्रस्त अथवा कपटपूर्ण वक्तव्यों या अनुमानों से दूर रहें। उदाहरण के लिए उन्हें तब तक किसी रिपोर्ट, विश्लेषण या सेवा को तब तक नि:शुल्क नहीं बताना चाहिए जब तक कि वह वास्तव में नि:शुल्क, बिना शर्त अथवा दायित्व रहित न हो।साथ ही वे अतीत के प्रदर्शन के आधार पर तयशुदा अथवा जोखिम रहित प्रतिफल की गारंटी नहीं दे सकते। इन्हें ऐसे वक्तव्य देने से भी रोका गया है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से अन्य विज्ञापनदाताओं अथवा मध्यवर्ती संस्थाओं को बदनाम न करें या फिर अन्य मध्यवर्तियों पर किसी तरह की श्रेष्ठता दिखाने के लिए अनुचित तुलना न करें।
सम्भावना है कि इससे उन तमाम गतिविधियों पर रोक लगाने में मदद मिलेगी जो सोशल मीडिया पर आम हैं। खासतौर पर जहां निवेश सलाहकार या शोध विश्लेषक ऐसे मॉडल पोर्टफोलियो दिखाते हैं जो वास्तव में निवेशकों के नहीं होते या जहां वे प्रतिद्वंद्वियों के साथ गलत तुलना के जरिये अपने प्रदर्शन को बेहतर बताते हैं।एक ओर जहां यह निवेशकों के बचाव की संभावित परत तैयार करता है, वहीं कई निवेश सलाहकार मौखिक प्रचार के जरिये कारोबार तैयार करते हैं और उच्च मूल्य वाले ग्राहक तलाश करते हैं। ऐसे में वे नियामकीय ढांचे से बाहर रह सकते हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट नहीं है कि क्या यह संहिता बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा गलत बिक्री को रोकेगी क्योंकि वे भी कारोबार के लिए एजेंटों के मौखिक संचार पर भरोसा करते हैं।
संहिता में विज्ञापनों के लिए पूर्व मंजूरी जटिल और व्यवहार में असंभव साबित हो सकती है। अगर इसे केवल भुगतान वाले संचार पर लागू किया जाता है तो इसे टाला जा सकता है। निवेश सलाहकारों अथवा शोध विश्लेषकों में से अधिकांश की सामग्री सोशल मीडिया पर नि:शुल्क बंटती है। वहीं अगर यह निवेश सलाहकारों और शोध विश्लेषकों के हर संचार पर लागू होती है तो उसका आकार इतना बड़ा है कि इसका क्रियान्वयन बहुत मुश्किल होगा।ऐसे में नियामक के लिए आवश्यक है कि वह ‘विज्ञापन’ को ठीक से परिभाषित करे और उसे शैक्षणिक सामग्री अथवा डेटा से अलग करे। सैद्धांतिक दृष्टि से तो यह संहिता सही दिशा में कदम है लेकिन इसे और व्यवस्थित करना होगा।