भारत के दिव्यांग खिलाड़ी बने विश्व चैंपियन
केन्द्र सरकार ने भारत की महिला एथलीट दीपा मलिक को सर्वोच्च खेल रत्न पुरस्कार प्रदान कर यह जता दिया है कि पैरा खिलाडिय़ों को भी उतना ही महत्व दिया जायेगा जितना सामान्य खिलाडिय़ों को। दीपा मलिक से पूर्व पैरा एथलिट देवेन्द्र झाझडिय़ा को भी खेलरत्न पुरस्कार मिल चुका है।
महाराष्ट्र की रहने वाली पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी मानसी जोशी ने महिला एकल में उसी दिन गोल्ड मेडल जीता जब पीवी सिंधु ने गोल्ड जीता था। मानसी जोशी की बचपन से ही बैडमिंटन खेलने मे रूची थी। उसके पिता मुंबई के भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में काम करते थे। वहीं से मानसी ने बैडमिंटन खेलना शुरू किया। मानसी स्कूल और जिला स्तर पर खिताब जीतने लगी। लेकिन 2011 में एक सडक़ दुर्घटना के चलते उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई। वह करीब दो महीने तक अस्पताल के बिस्तर पर रही।
लेकिन इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर की पढ़ाई कर चुकी 30 वर्षीय मानसी जोशी ने जिन्दगी से हार नहीं मानी। और 8 साल बाद उन्होंने पैरा बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप, बासेल स्विट्जरलैंड में सोने का तमगा जीता। पीवी सिंधु के खिताब जीतने से कुछ घंटे पहले मानसी पदक जीत चुकी थीं। फाइनल में उनके सामने पारुल परमार थीं जो पारुल डिफेंडिंग चैंपियन थीं। पैरा बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में मानसी जोशी को टक्कर देने वाली शटलर पारुल परमार जिनको मानसी ने 21-12, 21-7 से हराकर खिताब जीता। फाइनल्स में पहुंचने वाली दोनों खिलाड़ी भारत की थी। पारुल परमार 3 बार पैरा बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियन रह चुकी थी।
मानसी जोशी ने महिला एकल के फाइनल में जीत हासिल की। इस कैटिगरी में वे खिलाड़ी शामिल होते हैं जिनके एक या दोनों लोअर लिंब्स काम नहीं करते और जिन्हें चलते या दौड़ते समय संतुलन बनाने में परेशानी होती है। जीत के बाद मानसी जोशी ने अपने फेसबुक पेज पर खुशी जाहिर करते हुये लिखा कि मैंने इसके लिए कड़ी मेहनत की है और मैं बहुत खुश हूं कि इसके लिए बहाया गया पसीना और मेहनत रंग लाई है। यह वर्ल्ड चैंपियनशिप में पहला गोल्ड मेडल है। मानसी ने इसके लिए गोपचंद अकादमी के अपने कोचिंग स्टाफ का भी शुक्रिया अदा किया। इसके साथ ही उन्होंने कोच पुलेला गोपीचंद का भी शुक्रिया अदा करते हुये लिखा कि गोपी सर को मेरे हर मैच के लिए मौजूद रहने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।
एक दुर्घटना ने मानसी के शरीर को चोट पहुंचाई लेकिन उनके हौसले को नहीं डिगा पाई। ट्रक से लगी उस चोट के लिए मानसी को अपनी बाई टांग गंवानी पड़ी। लेकिन कृत्रिम टांग के जरिए वह फिर खड़ी हुई और खेलना शुरू किया। उनकी आंखों में बैडमिंटन खेलने का सपना था। वह हैदराबाद के पुलेला गोपीचंद अकादमी में पहुंची। 2017 में साउथ कोरिया मे हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक जीता था। इससे पहले 2015 में उन्होंने पैरा वर्ल्ड चैंपियनशिप में मिक्स्ड डबल्स में रजत पदक जीता था। फिर उनकी आंखों में सोने का तमगा जीतने का सपना पलने लगा। उन्होंने उसकी तैयारी की और फिर 25 अगस्त को उसे हासिल किया। मानसी जोशी गोपीचंद एकेडमी में खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देती है।
रविवार को ही भारत के नाम मेन्स सिंगल्स के एसएल-3 पैरा बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप फाइनल्स मुकाबले में एक और गोल्ड जुड़ गया था। भारत के पैरा बैडमिंटन प्लेयर और वर्ल्ड के नम्बर एक पैरा शटलर प्रमोद भगत ने फाइनल्स में इंग्लैंड के डेनियल बेथेल को हराया। इस मैच में पहला गेम 6-21 से हारने के बाद प्रमोद ने शानदार वापसी की और बाकी दो गेम्स में 21-14, 21-5 से जीत हासिल कर के गोल्ड मेडल जीता। इसके पहले प्रमोद इसी कैटेगरी में मेन्स डबल्स में भी गोल्ड जीत चुके थे। यानी कि पैरा बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत का प्रदर्शन बेहतर था।
जहां एक ओर मानसी जोशी ने पैरा बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप में महिला सिंगल्स में वर्ल्ड चैंपियन का ताज हासिल किया तो वहीं प्रमोद भगत के नाम सिंगल्स और डबल्स दोनों के विश्व खिताब आए। इसके अलावा प्रमोद भगत के मेन्स डबल्स में साथी मनोज सरकार के नाम भी डबल्स का गोल्ड है। यही नहीं मानसी जोशी को फाइनल्स में टक्कर देने वाली पारुल को भी सिल्वर मिला। इसके अलावा भारत के ही तरुण ढिल्लन ने दो सिल्वर मेडल जीते। भारत ने इस बार कुल 12 मेडल जीते और अपने पिछले सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से थोड़ा ही कमतर प्रदर्शन किया, जहां उसके इतने ही मेडल थे, लेकिन 4 गोल्ड थे। लेकिन फिर भी इसे असाधारण प्रदर्शन ही माना जाएगा।
पिछले कुछ सालों में भारतीय पैरा स्पोर्ट्स खिलाड़ी कमाल का प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में जब मुख्य स्पर्धा में हम बमुश्किल ही पदक जीत पाते हैं वही पैरा खिलाड़ी लगातार पैरा ओलम्पिक्स से लेकर वर्ल्ड चैंपियनशिप्स तक कमाल करते जा रहे हैं। लेकिन हमारे देश में उभरते हुये पैरा खिलाडिय़ों को मुख्य धारा के खिलाड़ियों की तरह मान सम्मान, सुविधायें, संरक्षण नहीं मिल पाता है जो उनके प्रति की जा रही उपेक्षा को ही दर्शाता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्धारा विकलांग शब्द को बदलकर दिव्यांग करना शारिरीक रूप से असक्षम लोगों के मनोबल को बढ़ाने की दिशा में किया गया एक सकारात्मक प्रयास माना जाता हैं। वहीं विश्व स्तर पर अपनी बेहतर खेल प्रतिभा का प्रदर्शन करने वाले दिव्यांग खिलाडिय़ों के प्रति समाज, सरकार, खेल संघो व मीडिया का उपेक्षित रवैया कहीं ना कही उन खिलाड़ियों के मनोबल को कमजोर ही करता है। हमारे समाज के जिम्मेदार वर्ग को दिव्यांग खिलाड़ियों का खुलकर हौसला अफजाई करनी चाहिये ताकि वो खेलों में और अधिक श्रेष्ठ प्रदर्शन कर देश का मान बढ़ा सकें।