#AshokGehlot अभी अनशन का ऐलान कर रहे हैं सचिन पायलट, जब उपमुख्यमंत्री थे तब कोई एक्शन क्यों नहीं लिया?
जनवरी 2023 के बाद राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के सियासी तेवर बदल जाएंगे, क्योंकि अब चुनाव हैं, लिहाजा कोई पॉलिटिकल रिस्क नहीं है!
सचिन पायलट ने अपनी ही पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अभी चिट्ठियां लिखने और अनशन का ऐलान करनेवाले सचिन पायलट ने तब भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं लिया जब वे उपमुख्यमंत्री थे?
जाहिर है, अशोक गहलोत के सियासी समीकरण में सचिन पायलट उलझ गए हैं!
पहले सचिन पायलट बगावत करके एक्सपोज हुए और उसके बाद अशोक गहलोत ने बड़ी तेजी से न केवल सचिन पायलट के समर्थकों को अपनी ओर किया, बल्कि गोविंद सिंह डोटासरा को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनावा कर सियासत के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं?
याद रहे, विधानसभा चुनाव में टिकट के बंटवारे में प्रदेश अध्यक्ष की प्रमुख भूमिका होती है, ऐसे में सचिन पायलट के समर्थकों के लिए कितनी संभावना है?
दरअसल, सचिन पायलट की यह राजनीति मोदी टीम को फायदा पहुंचाएगी, कैसे….
एक- यदि राजस्थान में वसुंधरा राजे कमजोर होती है, तो मोदी टीम को सियासी मनमानी करने का अवसर मिल जाएगा और वह आसानी से वसुंधरा की सीएम पद की दावेदारी को नजरअंदाज कर सकेंगे!
दो- यदि वसुंधरा राजे पक्ष बीजेपी में कमजोर होता है, तो कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में नुकसान होगा, कांग्रेस को बीजेपी की गुटबाजी का लाभ नहीं मिलेगा, जबकि सचिन पायलट के कारण गोदी मीडिया कांग्रेस की गुटबाजी को एक्सपोज करके बीजेपी को लाभ पहुंचाने की कोशिश करेगा?
देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस नेतृत्व विधानसभा चुनाव के समय सचिन पायलट के पॉलिटिकल ऐलान को किस तरह से लेता है, कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई होती है या राजस्थान को भी पंजाब की तर्ज पर भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है?
लोकप्रियता और सक्रियता के बावजूद सचिन पायलट, सीएम अशोक गहलोत को सियासी मात क्यों नहीं दे पा रहे हैं?
पल-पल इंडिया (17 फरवरी 2023). राजस्थान में विधानसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस, दोनों को बाहर के बजाए भीतर से ज्यादा राजनीतिक परेशानी है.
जहां बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सत्ता की राह में बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व बड़ी बाधा है, वहीं कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए सचिन पायलट सवालिया निशान हैं.
यह बात अलग है कि न तो वसुंधरा राजे को नजरअंदाज किया जा सकता है और न ही कांग्रेस में अशोक गहलोत का कोई विकल्प है.
बड़ा सवाल यह है कि- लोकप्रियता और सक्रियता के बावजूद सचिन पायलट, सीएम अशोक गहलोत को सियासी मात क्यों नहीं दे पा रहे हैं?
इसके कई कारण हैं….
एक- सचिन पायलट लोकप्रिय जरूर हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में ही है, जबकि अशोक गहलोत की पकड़ पूरे राजस्थान में है.
दो- सचिन पायलट में सियासी धैर्य का अभाव है, कभी वे अशोक गहलोत के बाद सर्वमान्य नेता थे, कांग्रेस अध्यक्ष थे, उप-मुख्यमंत्री थे, मतलब…. अशोक गहलोत के उत्तराधिकारी, लेकिन…. बगावत करके पॉलिटिकली एक्सपोज हो गए, अब राजस्थान में अशोक गहलोत के उत्तराधिकारियों में प्रतापसिंह खाचरियावास, महेंद्रजीत सिंह मालवीया आदि के नाम हैं.
तीन- याद रहे, कभी अशोक गहलोत के सामने भी सचिन पायलट जैसी सियासी चुनौतियां थी, राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे हरिदेव जोशी, शिवचरण माथुर, परसराम मदेरणा जैसे असरदार नेताओं की मौजूदगी थी, लेकिन सियासी धैर्य के चलते अशोक गहलोत राजस्थान की सियासी बुलंदियों पर पहुंचे.
चार- सबसे बड़ी परेशानी यह है कि विधायकों का बहुमत सचिन पायलट के साथ नहीं है, वरना वे भी हरिदेव जोशी की तरह फिर से सत्ता हासिल कर सकते थे.
पांच- क्योंकि इस वक्त राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सीएम गहलोत के करीबी गोविंद सिंह डोटासरा है, लिहाजा अगले चुनाव में भी सचिन पायलट समर्थको के लिए कुछ खास संभावनाएं नहीं हैं.
छह- यदि सचिन पायलट बदले सियासी माहौल में राजस्थान में उलझने के बजाए कांग्रेस संगठन के केंद्रीय नेतृत्व के साथ जुड़ जाते, तो ज्यादा फायदे में रहते, क्योंकि उन्हे अपना सियासी कद बढ़ाने का फिर से अवसर मिल जाता, जबकि उनका लक्ष्य अभी भी राजस्थान सीएम की कुर्सी तक ही है.
सात- कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व पंजाब में सियासी गलती कर चुका है, इसलिए केवल सचिन पायलट को खुश करने के लिए राजस्थान में किसी बदलाव की पॉलिटिकल रिस्क नहीं ले सकता है.
आठ- सचिन पायलट के समर्थक बताते हैं कि केवल उनकी मेहनत की बदौलत पिछला राजस्थान विधानसभा चुनाव कांग्रेस जीती थी, जबकि सीएम गहलोत समर्थकों का सवाल है कि- यदि ऐसी बात है, तो एमपी, छत्तीसगढ़ में किसके कारण कांग्रेस चुनाव जीती थी? सच्चाई तो यही है कि पिछला विधानसभा चुनाव राहुल गांधी और कांग्रेस के प्रादेशिक नेताओं की मेहनत के कारण कांग्रेस जीती थी!
नौ- वैसे भी अशोक गहलोत सरकार ने जो काम किए है और जो सियासी चक्रव्यूह तैयार किया है, उसे तोड़ना आसान नहीं है, अशोक गहलोत के सामने बीजेपी में वसुंधरा राजे के अलावा कोई सक्षम नेता नहीं है और वसुंधरा राजे को बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व आगे आने नहीं दे रहा है, इसलिए अशोक गहलोत के लिए विधानसभा चुनाव अब तक तो कोई बड़ी चुनौती नहीं है.
देखना दिलचस्प होगा कि- राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 से पहले सियासी समीकरण में क्या-क्या बदलाव आते हैं?