महाराष्ट्र में विपक्षी एकता में रोड़ा बना राहुल का सावरकर वाला बयान, पीएम की डिग्री को लेकर भी खटपट शुरू
नई दिल्ली (New Delhi) । राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की सांसदी छिनने के बाद जहां एक तरफ कई विपक्षी दल (opposition party) लामबंद हो रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र (Maharashtra) में सियासी समीकरण बदलने लगे हैं। राहुल गांधी ने मोदी सरनेम केस में सूरत की कोर्ट से सजा पाने के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में कहा था कि वह सावरकर नहीं हैं, जो माफी मांग लें। इस पर महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी गठबंधन की सहयोगी पार्टी शिवसेना उद्धव गुट के नेता उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने राहुल के बयान और स्टैंड का विरोध किया।
महाविकास अघाड़ी में स्थितियां यहां तक आ पहुंची कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की रात्रिभोज से शिवसेना ने खुद को अलग ही रखा। गठबंधन में बढ़ती तल्खी को देखते हुए मराठा छत्रप और एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने बीच-बचाव किया और राहुल को सावरकर पर टिप्पणी करने से बचने की सलाह दी। इस तरह मामला शांत हो गया।
अब पीएम मोदी की डिग्री विवाद पर महाविकास अघाड़ी में खटपट नजर आ रहा है। एक तरफ शिव सेना (उद्धव बालाजी ठाकरे) के सांसद और प्रवक्ता संजय राउत ने पीएम मोदी से मामले में आगे बढ़कर अपनी डिग्री दिखाने की बात कही है तो दूसरी तरफ एनसीपी नेता और महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाले शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने कहा है कि नरेंद्र मोदी को देश के लोगों ने 2014 और 2019 के चुनावों में उनकी डिग्री के आधार पर नहीं बल्कि उनके करिशमा और लोकप्रियता के आधार पर चुना है। पवार ने यह भी कहा कि पीएम की डिग्री से ज्यादा बड़े मुद्दे बेरोजगारी और महंगाई है।
इससे पहले राज्य सभा सांसद संजय राउत ने कहा था कि पीएम मोदी को चाहिए कि वो संसद भवन के एंट्री गेट पर अपनी डिग्री चिपका दें, ताकि देश के कानून निर्माता और देशवासी उनकी योग्यता से वाकिफ हो सकें।
राउत ने नई दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए यह टिप्पणी तब की, जब गुजरात हाई कोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के एक आदेश को रद्द करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया था। केजरीवाल ने सूचना का अधिकार के तहत गुजरात विश्वविद्यालय से पीएम मोदी की डिग्री के बारे में जानकारी मांगी थी।
बता दें कि महाराष्ट्र में अगले साल लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके अलावा बीएमसी चुनाव भी सिर पर हैं। ऐसे में उद्धव ठाकरे के गुट वाली शिव सेना जो हार्डकोर हिन्दुत्व और सावरकर की वकालत करती रही है, राहुल गांधी की बात पर चुप नहीं बैठ सकती क्योंकि उससे उसे वोट बैंक के खिसकने का खतरा है।
दूसरे हाथ वह बीजेपी और उसके शीर्ष नेतृत्व पर हमला करने से कोई भी मौका नहीं गंवाना चाहती क्योंकि बीजेपी की वजह से पहले तो उद्धव ठाकरे की कुर्सी गई और बाद में पार्टी भी टूट गई। उधर, एनसीपी बीच-बचाव के रास्ते चल रही है। वह कांग्रेस, बीजेपी और उद्धव तीनों के साथ सरकार बना चुकी है।