लोकतंत्र-संविधान पर मंडरा रहा खतरा, राजनीतिक गतिविधियों पर भी की जा रही है पहरेदारी : खड़गे
रायपुर । कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने संचालन समिति की बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि महाधिवेशन विधानसभा चुनावों और उसके बाद 2024 के आम चुनाव की पृष्ठभूमि में हो रहा है। यह हमारे सामने एक बड़ी चुनौती है और एक बड़ा अवसर भी है। उन्होंने कहा आज देश के सामने कई गंभीर चुनौतियां खड़ी हैं, लोकतंत्र और संविधान पर खतरा मंडरा रहा है, संसदीय संस्थाएं भी गंभीर संकट से जूझ रही हैं। खड़गे ने संचालन समिति के सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि कार्य समिति के चुनाव के संदर्भ में सब खुलकर अपनी बात रखिए और सामूहिक तौर पर फैसला लीजिए, आप सबकी जो राय बनेगी, वो मेरी और सबकी राय होगी। उन्होंने कहा कि 1885 से अब तक कांग्रेस के 138 साल के इतिहास में 84 अधिवेशन हो चुके हैं। सौ साल बाद फिर से उसी संकल्प और भाव की जरूरत है। ये उनके प्रति हमारी सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।
खड़गे ने कहा कि कांग्रेस के हर महाधिवेशन में कुछ अहम फैसले हुए हैं, जिससे हमारा संगठन आगे बढ़ा। उन्होंने कहा कि कुछ अधिवेशन मील के पत्थर बने। वहां होने वाले फैसले आज भी इतिहास में याद किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि इस मौके पर मैं ये बात रखना भी जरूरी समझता हूं कि राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा से देश भर में जिस ऊर्जा भरी और महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक मुद्दों पर जिस तरह जागरूकता फैलायी, उस जोश को हमें बनाए रखना है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि छत्तीसगढ़ के इतिहास में कांग्रेस का यह महाधिवेशन आधा दर्जन राज्यों के विधान सभा चुनावों और उसके बाद 2024 के आम चुनावों की पृष्ठभूमि में हो रहा है। हमारे सामने ये एक बड़ी चुनौती भी है और एक बड़ा अवसर भी है। उन्होंने कहा कि हम जो फैसले लेंगे वो कन्याकुमारी से कश्मीर तक हमारी पार्टी के भविष्य का एक मजबूत आधार बनेंगे। उन्होंने नेताओं से कहा कि वो बातें रखें जो जनता के मुद्दों से सीधे जुड़ी हों। और जिससे जमीनी स्तर से जुड़े साथियों में ठोस संदेश संकेत जाये।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि हमें सामूहिक तौर पर यहां बहुत से फैसले लेने हैं, जिन पर हमारी पार्टी और हम सबका भविष्य जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा हमारा महाधिवेशन ऐसे दौर में हो रहा है, जब देश के सामने कई गंभीर चुनौतियां खड़ी हैं। लोकतंत्र और संविधान पर खतरा मंडरा रहा है। संसदीय संस्थाएं भी गंभीर संकट से जूझ रही हैं। राजनीतिक गतिविधियों पर भी पहरेदारी हो रही है। इस नाते हमें बहुत सोच विचार कर तथ्यों के साथ अपने विचारों को आगे बढाना है क्योंकि इस महाधिवेशन पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई हैं।