कैंसर और किडनी रोगों से ग्रस्त गैस पीड़ितों को दिया जाए अतिरिक्त मुआवजा
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गैस पीड़ित संगठनों ने दायर की सर्वोच्च न्यायालय में याचिका
भोपाल। राजधानी के यूनियन कार्बाइड हादसे के पीड़ितों की ओर से गैस पीड़ित संगठनों ने बहुसंख्यक गैस पीड़ितों को मुआवजे के मामले में हुए अन्याय को दूर करने के लिए हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की है। याचिका में कैंसर और घातक किडनी रोगों से ग्रस्त उन पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग की गई है, जिनकी गैस के संपर्क में आने से हुई शारीरिक नुकसान को गलत तरीके से अस्थायी क्षति के श्रेणी में रखा गया था।
यह जानकारी आज गैस पीड़ित संगठनों के प्रतिनिधियों ने मीडिया से चर्चा करते हुए दी।इस दौरान भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संगठन की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा कि“आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, कैंसर से ग्रस्त 11,278 पीड़ितों में से 90 प्रतिशत और घातक किडनी रोगों से ग्रस्त 1855 पीड़ितों में से 91 प्रतिशत को सरकार द्वारा इसके लिए अनुग्रह राशि का भुगतान किया गया, लेकिन उन्हें मुआवजे के रूप में केवल 25 हजार रुपये मिले। भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने कहा कि यूनियन कार्बाइड के अपने दस्तावेजों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मिथाइल आइसोसाइनेट के संपर्क से स्वास्थ्य को होने वाली क्षति स्थायी प्रकृति की है, फिर भी मुआवजे के लिए 93 प्रतिशत दावेदारों को मुआवज़ा संचालनालय द्वारा केवल “अस्थायी“ तौर पर क्षतिग्रस्त माना गया है। गैस पीड़ितों को अपर्याप्त मुआवजा मिलने के पीछे यही मुख्य कारण है।
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने सुप्रीम कोर्ट के 1991 और 2023 के आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि अपने आदेशों में सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि भोपाल पीड़ितों को दिए जाने वाले मुआवजे में किसी भी तरह की कमी की भरपाई भारत सरकार को करनी होगी। कैंसर और जानलेवा किडनी रोगों से पीड़ित भोपाल के पीड़ितों के लिए कम से कम 5 लाख रुपये के अतिरिक्त मुआवजे के लिए हमारा मामला स्पष्ट रूप से अपर्याप्त मुआवज़ा का मामला है।
भोपाल। राजधानी के यूनियन कार्बाइड हादसे के पीड़ितों की ओर से गैस पीड़ित संगठनों ने बहुसंख्यक गैस पीड़ितों को मुआवजे के मामले में हुए अन्याय को दूर करने के लिए हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की है। याचिका में कैंसर और घातक किडनी रोगों से ग्रस्त उन पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग की गई है, जिनकी गैस के संपर्क में आने से हुई शारीरिक नुकसान को गलत तरीके से अस्थायी क्षति के श्रेणी में रखा गया था।
यह जानकारी आज गैस पीड़ित संगठनों के प्रतिनिधियों ने मीडिया से चर्चा करते हुए दी।इस दौरान भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संगठन की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा कि“आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, कैंसर से ग्रस्त 11,278 पीड़ितों में से 90 प्रतिशत और घातक किडनी रोगों से ग्रस्त 1855 पीड़ितों में से 91 प्रतिशत को सरकार द्वारा इसके लिए अनुग्रह राशि का भुगतान किया गया, लेकिन उन्हें मुआवजे के रूप में केवल 25 हजार रुपये मिले। भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने कहा कि यूनियन कार्बाइड के अपने दस्तावेजों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मिथाइल आइसोसाइनेट के संपर्क से स्वास्थ्य को होने वाली क्षति स्थायी प्रकृति की है, फिर भी मुआवजे के लिए 93 प्रतिशत दावेदारों को मुआवज़ा संचालनालय द्वारा केवल “अस्थायी“ तौर पर क्षतिग्रस्त माना गया है। गैस पीड़ितों को अपर्याप्त मुआवजा मिलने के पीछे यही मुख्य कारण है।
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने सुप्रीम कोर्ट के 1991 और 2023 के आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि अपने आदेशों में सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि भोपाल पीड़ितों को दिए जाने वाले मुआवजे में किसी भी तरह की कमी की भरपाई भारत सरकार को करनी होगी। कैंसर और जानलेवा किडनी रोगों से पीड़ित भोपाल के पीड़ितों के लिए कम से कम 5 लाख रुपये के अतिरिक्त मुआवजे के लिए हमारा मामला स्पष्ट रूप से अपर्याप्त मुआवज़ा का मामला है।