सुप्रीम कोर्ट: हर निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकती सरकार!
अभिमनोज
सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति से जुड़ी मुंबई के प्रॉपर्टी मालिकों की याचिका सहित कई याचिकाओं पर फैसला सुनाया है कि- सरकार हर निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकती, बहुमत के फैसले में तय किया है कि- हर निजी संपति को सामुदायिक भौतिक संसाधन नहीं माना जा सकता, कुछ खास संसाधनों को ही सरकार सामुदायिक संसाधन मानकर इनका इस्तेमाल सार्वजनिक हित के लिए कर सकती है, सभी संसाधनों का नहीं.
खबरों की मानें तो…. यह मामला 1986 में महाराष्ट्र में हुए कानून संशोधन से जुड़ा है, जिसमे सरकार को प्राइवेट बिल्डिंग को मरम्मत और सुरक्षा के लिए अपने कब्जे में लेने का अधिकार मिला था.
खबरें हैं कि…. सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति के अधिग्रहण पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि- सरकार सभी निजी संपत्तियों को नहीं ले सकती.
सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 9 जजों की पीठ ने यह फैसला 8-1 के बहुमत से लिया है, पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस राजेश बिंडल और जस्टिस एजी मसीह शामिल हैं.
इस विषयक 9 जजों की बेंच ने बहुमत से फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के पिछले फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि- सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है.
खबरों पर भरोसा करें तो…. इस मामले में अदालत का कहना था कि- भारत की अर्थव्यवस्था का मकसद विकासशील देश की चुनौतियों से निपटना है, ना कि किसी एक आर्थिक ढांचे में बंधे रहना. इसी क्रम में जस्टिस अय्यर के इस विचार से अदालत ने असहमति जताई कि- निजी संपत्ति को भी सामुदायिक संपत्ति माना जा सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि- भारत की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य किसी खास आर्थिक मॉडल को फॉलो करना नहीं है, वरन उसका उद्देश्य एक विकासशील देश होने के नाते आने वाली चुनौतियों का सामना करना है!