कमजोर हुआ कांग्रेस का क्षेत्रीय नेतृत्व, खिसक रहा जनाधार
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नेताओं का अपने ही क्षेत्र में घट रहा प्रभाव
भोपाल। कांग्रेस की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की बैठक में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के कारणों में एक बड़ी जानकारी निकलकर सामने आई है। कांग्रेस ने माना है कि उसका क्षेत्रीय नेतृत्व लगातार कमजोर हुआ है, जिसके चलते पार्टी का जनाधार खिसक रहा है। अब कांग्रेस फिर से क्षेत्रीय नेतृत्व को मजबूत करने की कवायद करेगी।
प्रदेश में कांग्रेस को विधानसभा 2023 और फिर इस साल हुए लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के कारणों को जानने आई फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की बैठक में प्रत्याशियों ने हार के कई कारण गिनाए, मगर इन्हीं कारणों में से एक कारण यह भी सामने आया कि कांग्रेस का जो क्षेत्रीय नेतृत्व कभी मजबूत हुआ करता था, वह लगातार कमजोर हो रहा है। क्षेत्रीय नेताओं का प्रभाव अब अपने क्षेत्रों में भी मजबूत नहीं है। क्षेत्रीय नेतृत्व करने वाले कई नेताओं ने राष्ट्रीय राजनीति की तरफ रुख कर लिया। इसका असर यह हुआ कि इन नेताओं का अपने-अपने क्षेत्र में प्रभाव पहले जैसा नहीं रहा।
कांग्रेस नेताओं के दो दिन चले मंथन के बाद यह बात जब सामने आई तो एक बार फिर पार्टी में क्षेत्रीय नेतृत्व को मजबूत करने की बात कही जा रही है। माना जा रहा है कि जल्द ही कांग्रेस एक बार फिर क्षेत्रीय नेताओं को जिम्मेदारी देकर पार्टी को मजबूत करने की कवायद करेगी। ताकि एक बार फिर खोए जनाधार को पाया जा सके। नेताओं की माने तो प्रदेश कांग्रेस की नई कार्यकारिणी के गठन में क्षेत्रीय नेताओं को जिम्मेदारी दी जा सकती है।
पहले जैसा नहीं रहा नेताओं का जनाधार
गौरतलब है कि कांग्रेस में कभी ग्वालियर-चंबल इलाके में सिंधिया परिवार, इसी क्षेत्र में दिग्विजय सिंह परिवार का खासा प्रभाव था। मगर सिंधिया के भाजपा में जाने और दिग्विजय के राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहने से यहां पर प्रभाव कमजोर हुआ है। इसी तरह मालवा निमाड़ में अरुण यादव का खासा दबदबा नजर आता था, मगर उनका प्रभाव भी अब पहले जैसा नहीं रहा। महाकौशल में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का भी प्रभाव कम हो चला है। बुंदेलखंड के नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी राजनीति से संन्यास ले चुके है। विंध्य में अजय सिंह सक्रिय हैं, मगर जिम्मेदारी के अभाव में वे भी कार्यकर्ता की बीच उतनी सक्रियता नहीं दिखा रहे।
भोपाल। कांग्रेस की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की बैठक में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के कारणों में एक बड़ी जानकारी निकलकर सामने आई है। कांग्रेस ने माना है कि उसका क्षेत्रीय नेतृत्व लगातार कमजोर हुआ है, जिसके चलते पार्टी का जनाधार खिसक रहा है। अब कांग्रेस फिर से क्षेत्रीय नेतृत्व को मजबूत करने की कवायद करेगी।
प्रदेश में कांग्रेस को विधानसभा 2023 और फिर इस साल हुए लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के कारणों को जानने आई फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की बैठक में प्रत्याशियों ने हार के कई कारण गिनाए, मगर इन्हीं कारणों में से एक कारण यह भी सामने आया कि कांग्रेस का जो क्षेत्रीय नेतृत्व कभी मजबूत हुआ करता था, वह लगातार कमजोर हो रहा है। क्षेत्रीय नेताओं का प्रभाव अब अपने क्षेत्रों में भी मजबूत नहीं है। क्षेत्रीय नेतृत्व करने वाले कई नेताओं ने राष्ट्रीय राजनीति की तरफ रुख कर लिया। इसका असर यह हुआ कि इन नेताओं का अपने-अपने क्षेत्र में प्रभाव पहले जैसा नहीं रहा।
कांग्रेस नेताओं के दो दिन चले मंथन के बाद यह बात जब सामने आई तो एक बार फिर पार्टी में क्षेत्रीय नेतृत्व को मजबूत करने की बात कही जा रही है। माना जा रहा है कि जल्द ही कांग्रेस एक बार फिर क्षेत्रीय नेताओं को जिम्मेदारी देकर पार्टी को मजबूत करने की कवायद करेगी। ताकि एक बार फिर खोए जनाधार को पाया जा सके। नेताओं की माने तो प्रदेश कांग्रेस की नई कार्यकारिणी के गठन में क्षेत्रीय नेताओं को जिम्मेदारी दी जा सकती है।
पहले जैसा नहीं रहा नेताओं का जनाधार
गौरतलब है कि कांग्रेस में कभी ग्वालियर-चंबल इलाके में सिंधिया परिवार, इसी क्षेत्र में दिग्विजय सिंह परिवार का खासा प्रभाव था। मगर सिंधिया के भाजपा में जाने और दिग्विजय के राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहने से यहां पर प्रभाव कमजोर हुआ है। इसी तरह मालवा निमाड़ में अरुण यादव का खासा दबदबा नजर आता था, मगर उनका प्रभाव भी अब पहले जैसा नहीं रहा। महाकौशल में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का भी प्रभाव कम हो चला है। बुंदेलखंड के नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी राजनीति से संन्यास ले चुके है। विंध्य में अजय सिंह सक्रिय हैं, मगर जिम्मेदारी के अभाव में वे भी कार्यकर्ता की बीच उतनी सक्रियता नहीं दिखा रहे।